रविवार, सितंबर 22, 2019

जब हम लाश हो गए


जब हम लाश हो गए
थोड़ी सी पाई जिंदगी
और उदास हो गए?
हम पैदा हुए तो कब?
जब हम लाश हो गए।

लाशों की बहुत जरूरत है
जिंदा थे तो कोई पूछता न था
अपने बेटों को भी याद आई तो कब?
जब हम लाश हो गए।

हम सोते भी रहे, हम रोते भी रहे
खबरनबीशों की आंखों में रही पट्टी
अखबारों ने भी छापे तो कब?
जब हम लाश हो गए।

वो कुत्ता भी सरकारी महकमे की तरह
इंतजार में था
आया भी सूँघने तो कब?
जब हम लाश हो गए।

लुटती रही यूपी में आबरू
बचे रहे तो बचना मुश्किल था
लोगों को फुर्सत भी मिली तो कब?
जब हम लाश हो गए।

गिड़गिड़ाती रही मैं बेटी बन
हिफाजत के लिए कानून के सामने
तुम्हारा न्याय भी आया तो कब?
जब हम लाश हो गए।

बहुत बुरे थे हम
बुझा रहा दुश्मनों का चिराग
उजाला भी हुआ उनके घर तो कब?
जब हम लाश हो गए।

मुनासिब नहीं था चुनाव जीतना
जिन्दा रहती इंसानियत अगर
वो कुर्सी पर चढ़े भी तो कब?
जब हम लाश हो गए।

मैंने पूछा ये बोलता क्यों नहीं है
गूँगा, बहरा, लचर समाज
अरे! तूने बोलना भी सीखा तो कब?
जब हम लाश हो गए।

पिता होने के दम्भ में डाँटा तुमने
साक्षी होने की यातना दी
जनक बन स्वयंवर रचे भी तो कब?
जब हम लाश हो गए।

रचना:सुरेन्द्र कुमार पटेल
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