राष्ट्र भाषा हिन्दी
विद्या धन अर्जित कर,
पण्डित हुए विख्यात।
निज भाषा ज्ञान बिन,
कोई न माने बात।।
अंग्रेजी पढ़ कर भी,
नहीं मिला सम्मान।
बिन निज भाषा के,
हुआ बड़ा अपमान।।
कला और शिक्षा के क्षेत्र में,
मिला ज्ञान विविध प्रकार।
सम्पूर्ण विश्व में करे,
निज भाषा की प्रचार।।
न रंग चाहिए न रूप,
बना नया प्रारूप।
प्रथम ठौर निज भाषा की,
मानो इसे सम रूप।।
ले संकल्प मिलकर सब,
यही हमारा आशा है।
करो सम्मान हिन्दी की,
जन -जन की ये भाषा है।।
घोषणा पत्र
मै घोषणा करता हूँ कि देबीदीन चन्द़वँशी मेरा यह रचना मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित है। किसी को परेशानी आती है तो रचनाकार स्वयं जिम्मेदार होगा।
उद्देश्य
भारत की राष्ट्र भाषा हिन्दी है। किसी दूसरे भाषा का उपयोग नहीं करना चाहिए और हिन्दी भाषा का सम्मान कर उसके आन, बान, सम्मान किसी प्रकार के ठेस नहीं पहुँचना चाहिए। हम संकल्प के साथ हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार करे।
हिन्दी दिवस के शुभ अवसर पर सादर समर्पित
स्वरचित कविता
देबीदीन चन्द़वँशी
ग्राम-बेलगवाँ
तह0 पुष्पराजगढ़
जिला - अनूपपुर
म0 प्र0
मो0 8819059964
अतिथि शिक्षक
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