बुधवार, जुलाई 08, 2020

तृष्णा : डी. ए. प्रकाश खांडे


🌹🌹तृष्णा 🌹🌹
जीवों में तृष्णा आती है,
तो आशाये बढ़ जाती है।
लोभ लाभ सब जीवन में,
पाने तृष्णा बढ़ जाती है।।
सुख पाने को मन भटका,
ज्ञान पाने को सब ज्ञानी ।
नई खोज में संलिप्त रहे,
देश-विदेश के बहु विज्ञान।।
जब अन्नत इच्छा होती है,
मानव में आशा जगती है।
हित अनहित फिर न दिखे,
रेत भी पानी लगती है।।
ज्ञान की तृष्णा में बुद्ध ने,
छोड़ा था घर-द्वार को।
हुआ अपमान ध्रुव का तो,
तृष्णा से पाया दरबार को।।
मृग तृष्णा में विहबल,
सिकता में खोजे वारि।
जन्म-जन्म की प्यास मिटे,
मानव कर्म सुधारि।।
पुत्र प्राप्ति की तृष्णा में,
माता भी विहबल रहती है।
प्रियतम के आशा में ज़िंदा,
प्रेयसी की अधर सिसकती है।।
कवि का तृष्णा कविता है,
मन की तृष्णा तो माया है।
मानव की तृष्णा मानवता,
संसार में सर्वस्व समाया है।।
नृप तृष्णा है प्रजा प्रेम,
मृग तृष्णा कस्तूरी है ।
दृग तृष्णा धन-दौलत,
मन की तृष्णा अधूरी है।।
नदिया सागर की चाह में,
नित बहती चली जाती है।
नारी तृष्णा नर में समाहित,
तृष्णा में नारी लजाती है।।
©डी.ए.प्रकाश खाण्डे
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़,जिला अनूपपुर म.प्र.

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