हिन्दी दिवस
हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा है। हिंदी भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में बोली जाती है। हिंदी हमारी 'राजभाषा' है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया था कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राजभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिंह का 50वां जन्मदिन भी था, जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया।
हिन्दी भाषा के सम्बन्ध में संवैधानिक प्रावधान
हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाये जाने का प्रयास किया जाता रहा है किन्तु जो संवैधानिक प्रावधान किये गये हैं उसके अनुसार हिन्दी को भारत की राजभाषा होने का दर्जा प्राप्त हुआ है। भारतीय संविधान के भाग 17 में अनुच्छेद 343(1) में लिखा गया है-“संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।‘’ हालांकि हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने से काफी लोग खुश नहीं थे और इसका विरोध करने लगे. इसी विरोध के चलते अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दे दिया गया। अनुच्छेद 343(2) में लिखा गया है-‘’ खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था: परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकॄत कर सकेगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 344 द्वारा राजभाषा आयोग के गठन का प्रावधान है। संविधान के अनुच्छेद 344(1) में लेख है कि ‘’राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारंभ से पांच वर्ष की समाप्ति पर और तत्पश्चात ऐसे प्रारंभ से दस वर्ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा, एक आयोग गठित करेगा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट विभिन्न भाषाओँ का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जिनको राष्ट्रपति नियुक्त करे और आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिाश्चित की जाएगी ।“ संविधान द्वारा हिन्दी भाषा के विकास के लिए अनुच्छेद 351 जोड़ा गया है, इस अनुच्छेद में हिन्दी भाषा के विकास के लिए संघ को निर्देशित किया गया है। इस अनुच्छेद में लेख किया गया है कि ‘’संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामाजिक संस्कॄति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकॄति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओँ में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कॄत से और गौणतः अन्य भाषाओँ से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समॄद्धि सुनिाश्चित करे।‘’
हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार का इतिहास-
हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सर्वप्रथम संगठित प्रयास हिन्दी साहित्य सम्मलेन के रूप में हुआ। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना 1 मई 1910 ई. में नागरी प्रचारिणी सभा के द्वारा हुआ। 1 मई 1910 को काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी की एक बैठक में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का एक आयोजन करने का निश्चय किया गया। 10 अक्टूबर 1910 को वाराणसी में पण्डित मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में पहला सम्मेलन हुआ। दूसरा सम्मेलन प्रयाग में करने का प्रस्ताव स्वीकार हुआ और सन् 1911 में दूसरा सम्मेलन इलाहाबाद में पण्डित गोविन्दनारायण मिश्र की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। दूसरे सम्मेलन के लिए प्रयाग में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' नाम की जो समिति बनायी गयी, वही एक संस्था के रूप में, प्रयाग (इलाहबाद) में विराजमान है। इस संस्था ने हिन्दी में उच्च कोटि की पुस्तकों का सृजन किया। गांधीजी भी भी इससे जुडे रहे। उन्होने सन 1917 में इन्दौर में सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने हिन्दी को जनमानस की भाषा कहा।
भारत सरकार के “हिंदी साहित्य सम्मेलन अधिनियम, 1962 के द्वारा इसे 'राष्ट्रीय महत्व की संस्था' घोषित किया गया है।
वैश्विक स्तर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। यह हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी जुटते हैं। इसका आरम्भ 1975 हुआ। इस बारे में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी ने पहल की थी। पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से नागपुर में सम्पन्न हुआ जिसमें प्रसिद्ध समाजसेवी एवं स्वतन्त्रता सेनानी विनोबा भावे ने अपना विशेष सन्देश भेजा।शुरू में में इसका आयोजन हर चौथे वर्ष आयोजित किया जाता था लेकिन अब यह अन्तराल घटाकर 3 वर्ष कर दिया गया है। अब तक ग्यारह विश्व हिन्दी सम्मेलन हो चुके हैं- मारीशस, नई दिल्ली, पुन: मारीशस, त्रिनिडाड व टोबेगो, लन्दन, सूरीनाम न्यूयार्क और जोहांसबर्ग में। दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन 2015 में भोपाल में आयोजित हुआ। यह 10 से 12 सितंबर तक भोपाल में हुआ। दसवें सम्मेलन का मुख्य कथ्य (थीम) था - ' हिन्दी जगत : विस्तार एवं सम्भावनाएँ '। 11वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन मॉरिशस में आयोजित किया गया। 12वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन 2021 न्यूयॉर्क में होगा। विश्व हिन्दी सचिवालय मॉरीसस के मोका गाँव में स्थित है। सचिवालय, 11 फरवरी 2008 से कार्यरत है। हिन्दी का एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में संवर्द्धन करने और विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना का निर्णय लिया गया। विश्व हिन्दी सचिवालय ने 11 फरवरी 2008 से औपचारिक रूप से कार्य करना आरंभ कर दिया।
इन्टरनेट की दुनिया में हिंदी: सबसे पहले हिन्दी टाइप शायद वर्डस्टार (वर्जन III प्लस) जैसे एक शब्द संसाधक ‘अक्षर’ में आया। फिर विंडोज़ आया और पेजमेकर व वेंचुरा का समय आया। इस सारी यात्रा में कम्प्यूटर केवल प्रिटिंग की दुनिया की सहायता भर कर रहा था। यूनिकोड के आगमन एवं प्रसार के पश्चात हिन्दी कम्प्यूटिंग प्रिंटिंग तक सीमित न रहकर संगणन के विभिन्न पहलुओं तक पहुँच गयी। अब भाषायी संगणन के सभी क्षेत्रों में हिन्दी अपनी पहुँच बना रही है। हिन्दी कम्प्यूटिंग को वर्तमान स्थिति तक पहुँचाने में सरकार, अनेक संस्थाओं, समूहों एवं प्रोग्रामरों-डैवलपरों का योगदान रहा।
हिन्दी साहित्य और समाज- हिन्दी हो या कोई अन्य भाषा वह समाज के प्रवाह के साथ ही खुद को प्रवाहमान किए रहती है। जो भाषा ऐसा करने में सक्षम नहीं होती, उसका अस्तित्व नहीं रह जाता। हिन्दी के सम्बन्ध में यह सुखद संयोग है कि हिन्दी में समाज के साथ प्रवाहमान होने का गुण विद्यमान है।यही कारण है कि अनगिनत विदेशी आक्रमणों के बावजूद हिन्दी का न केवल अस्तित्व है बल्कि हिन्दी में गौरवपूर्ण साहित्य भण्डार भी है हिन्दी जिन विदेशी भाषाओं के संपर्क में आई, इसने उनके शब्दों को तो ग्रहण किया किन्तु अपने स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं होने दिया। हिन्दी में उर्दू शब्दों की बहुलता के कारण उर्दू को हिंदी की बहन तक कहा जाता है। यह भी देखा जाता है कि उर्दू शब्द हिन्दी से भिन्नता रखते हुए भी हिन्दी के व्याकरण में पूरी तरह स्थापित होकर बोले जा सकते हैं। प्रायः पकिस्तान और अन्य निकट देशों में उर्दू हिन्दी के ढाँचे में ही बोली जाती है।
जैसे किसी काल का एक वास्तविक संसार होता है, वैसे ही भाषा भी अपने भीतर उस काल के संसार को रचती है। यदि किसी काल में युद्धोन्माद की अधिकता रही, तो उस काल के भाषा साहित्य में वह युद्धोन्माद प्रकट होता दिखायी पड़ेगा। जिस समय विदेशी आक्रान्ताओं और राजाओं के युद्ध होते रहे उस समय का सारा भाषा साहित्य वीर रस से भरा पडा है। हिन्दी ने इतिहास की दोहरी भूमिका का निर्वहन किया है। उसने वास्तविक संसार को साहित्य के रूप में संचित करने का कार्य किया है तो उसने समयानुकूल स्वयं में परिवर्तन लाने का भी प्रयास किया है। उसने समय की मांग के अनुसार स्वयं को बदला है ताकि वह समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके।
जब समाज युद्धोन्माद से विरत होकर भक्तिभावना की और मुडा तो उसका साक्षी हिन्दी भी रही. सूर, तुलसी, मीरा, कबीर, जायसी जैसे कवि आज भी हमारे बीच रह सके तो वह हिन्दी की मुखर अभिव्यक्ति क्षमता के कारण हैं। जब भारत में स्वतंत्रता का आन्दोलन राष्ट्रीय स्वरुप में पहुंचा तब भारत की संपर्क भाषा के रूप में इसने अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन किया। प्रेमचन्द जैसे साहित्यकारों ने हिन्दी को जनभाषा के रूप में स्थापित कर हिन्दी साहित्य को स्वतंत्रता आन्दोलन का अस्त्र बना दिया। सरकार प्रेमचंद जैसे लेखकों से डर गई और सोजे वतन नामक पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया। हिन्दी साहित्य का यह प्रभाव ही था कि प्रेमचंद को धनपतराय से प्रेमचंद बनकर रचनाएं लिखनी पडी।
आजकल हिन्दी- एक ओर जहाँ हिन्दी विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नये कीर्तिमान रच रही है तो वहीं वह उपेक्षा का शिकार भी हो रही है। शुद्ध या मानक हिन्दी का प्रयोग या तो विस्मय का विषय बन रहा है फिर मजाक का। कई स्थानों पर हिन्दी शब्दों के त्रुटिपूर्ण हिज्जों का लेखन हिन्दी की उपेक्षा का नमूना प्रस्तुत करता है। किसी विषय पर दीवारों पर लिखे गये नारे हों या फिर ट्रकों और बसों के पीछे लिखी गई शायरी, हमारी हिन्दी की वास्तिक स्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें ढेरों त्रुटियाँ मिल जाएँगी. यदि बात यहीं तक होती तो चिंता का विषय नहीं था किन्तु विद्यालय स्तर पर हिन्दी के प्रति उदासीनता आवश्यकता से अधिक चिंतित करती है। कई कारणों से अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है जहाँ जिन बच्चों की मातृभाषा ही हिन्दी है वहां भी हिन्दी का अध्यापन द्वितीय भाषा के रूप में कराया जाता है। वहीं शासकीय विद्यालयों में प्रथम कक्षा से ही अंग्रेजी को अनिवार्य किये जाने के कारण हिन्दी की उपेक्षा हुयी है। अतिरिक्त विषय की अनिवार्यता के कारण शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए हिन्दी को उतना महत्व नहीं मिल पाता जितना एक मातृभाषा के रूप में मिलना चाहिए। मोबाइल और इन्टरनेट के बढ़ते प्रयोग ने हिन्दी भाषा को सशक्त किया है तो वहीं बच्चों को मोबाइल की उपलब्धता ने हिन्दी साहित्य के अध्ययन को गैर जरूरी बना दिया है। अब बच्चे और बड़े दोनों ही साहित्य के अध्ययन की आवश्यकता महसूस नहीं करते। स्कूलों में शिक्षकों के बेरोकटोक इन्टरनेट और मोबाइल के प्रयोग ने छात्रों और शिक्षकों के मध्य संवादहीनता को जन्म दिया है। यह स्थिति भी हिन्दी के विकास के लिए घातक है।
मोबाइल में हिन्दी कीपैड का उपलब्ध होना एक सुखद संयोग है। यूनिकोड ने हिन्दी को अधिक सशक्त किया है। आप यूनिकोड हिन्दी को कंप्यूटर और मोबाइल दोनों में बिना फॉण्ट परिवर्तन के आसानी से पढ़ सकते हैं। किन्तु हमें अंगेजी शब्दों और इस्माइली के प्रयोग से हिंदी के भावपूर्ण शब्दों को प्रतिस्थापित होने से बचाना होगा।
हिन्दी को लेकर बहुत सी बातें लिखी जा सकती हैं।परन्तु सारांश में यह जान लेना जरूरी है कि हिंदी का भविष्य सुरक्षित है। यह बात अलग है कि जब हिन्दी को अन्तर्रष्ट्रीय स्तर पर आशातीत सफलता मिले तब हम अपनी ही हिन्दी विदेशियों से सीख रहे हों। यह स्थिति हिन्दी के लिए तो ठीक होगी किन्तु हमारे लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने से कम नहीं होगी। बहुत सी विदेशी कंपनियां हिन्दी में काम-काज को बढ़ावा दे रहीं हैं। कंप्यूटर में हिन्दी टाइपिंग से आगे गणन कार्य में इसके उपायों के बारे में सोचा जा रहा है। आने वाले समय में हिन्दी में प्रोग्रामिंग की जा सके, इसकी संभावना की तलाश की जा रही है।
छोटे-छोटे उपायों से हिन्दी का विकास किया जा सकता है। हिन्दी का महत्व इसलिए है क्योंकि संस्कृत और हिंदी दोनों कि लिपि एक ही है। हिन्दी के अध्ययन से ही संस्कृत का अध्ययन मजबूत होगा। इन दोंनों के साहित्य को मिला दिया जाए तो विश्व के कुल साहित्य पर इनका साहित्य भारी पड़ेगा। भारत में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा हिन्दी है। यह भारत की संपर्क भाषा भी है। हमें हिन्दी क्षेत्रों में हिन्दी के मानक प्रयोग पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है तो अहिन्दी क्षेत्रों में इसके विकास के लिए सस्ते व सरस साहित्य उपलब्ध कराने चाहिए। हिन्दी का ज्ञान, अहिन्दी क्षेत्र के लोगों को हिन्दी के निकट लाने का काम करेगा।और तभी हमारी हिन्दी राजभाषा से आगे निकलकर राष्ट्रभाषा के रूप में स्थान प्राप्त कर सकेगी।
(प्रस्तुत आंकड़े व तथ्य विभिन्न माध्यमों से साभार लिए गये हैं। इन आंकड़ों व तथ्यों के कहीं भी प्रयोग से पूर्व इनके यथार्थ होने की जाँच करना प्रयोगकर्ता की जिम्मेदारी होगी)
संकलन व लेखन: सुरेन्द्र कुमार पटेल
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4 टिप्पणियां:
अच्छी जानकारी है
धन्यवाद।
धन्यवाद!
हिन्दी दिवस पर सारगर्भित विचार के लिए हृदय से आभार !
दिन - प्रतिदिन हिन्दी भाषा में मौलिक लेख, कविता व बालसाहित्य को जो मंच मिला वह आज के युग में क्रन्तिकारी पहल है !इस आंदोलन को बनाये रखने के लिए हम सबको अपने हक़ कि जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा !
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