●एक नौजवान बच्चा●
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लोहे को लोहे से ढालता
एक नौजवान बच्चा
जिसकी उम्र होगी
तकरीबन 4 से 5 साल
जिसके हाथों में होने थे
खिलौने, कलम-किताबें
वह हथौड़ा लिए
तराश रहा अपनी ज़िन्दगी
जेठ की तपती दोपहरी
पेड़ के विरले पत्तों से
छानकर आतीं
बेरहम सघन किरणें
उसे कर रही हैं तप्त
मखमली हाथ
होते जा रहे सख़्त-खुरदुरे
छत नसीब नहीं
मैंने देखा उसे
अपने परिवार के साथ
देवी अहिल्या बाई
विश्विद्यालय
इंदौर के सामने
फुटपाथ पर बने
एक छोटे से टपरे में बसर करते
रोटी की तलाश में
वक़्त के साथ
उसे करना पड़ता है पलायन
बार-बार
उसके हालात
ढाल देंगे उसे
या वह
ख़ुद ही ढल जाएगा लोहे की तरह ।
©अमलेश कुमार
[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली]
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लोहे को लोहे से ढालता
एक नौजवान बच्चा
जिसकी उम्र होगी
तकरीबन 4 से 5 साल
जिसके हाथों में होने थे
खिलौने, कलम-किताबें
वह हथौड़ा लिए
तराश रहा अपनी ज़िन्दगी
जेठ की तपती दोपहरी
पेड़ के विरले पत्तों से
छानकर आतीं
बेरहम सघन किरणें
उसे कर रही हैं तप्त
मखमली हाथ
होते जा रहे सख़्त-खुरदुरे
छत नसीब नहीं
मैंने देखा उसे
अपने परिवार के साथ
देवी अहिल्या बाई
विश्विद्यालय
इंदौर के सामने
फुटपाथ पर बने
एक छोटे से टपरे में बसर करते
रोटी की तलाश में
वक़्त के साथ
उसे करना पड़ता है पलायन
बार-बार
उसके हालात
ढाल देंगे उसे
या वह
ख़ुद ही ढल जाएगा लोहे की तरह ।
©अमलेश कुमार
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