रविवार, मई 10, 2020

मां:डी.ए.प्रकाश खांडे


मां
हे! जगजननी;हे!हितकारणी,
शब्द प्रदायी महतारी।
खेतो से थककर;बेटा कहकर,
मुझे बुलाती मनोहारी।


निर्गुण निर्मूलं करुनामूलम,  
 विद्यारूपम उपकारी।
प्रकृति स्वरूपा; हित अनुरूपा,
शब्द प्रदायी महतारी।


 क्षीर प्रदायी; सब सुखदायी ,
मम तम -तापस दूर करो।
 हे¡ जीवनदायी; राग प्रदायी,
 हम बालक उद्धार करो।


 प्रभात में पढ़ने उठाती थी मां,
थके मांदे लोरी सुनाती थी मां।
बचपन के बक्त याद है मुझे,
धूप में आँचल लगाती थी मां।


 मां सिर्फ मां नहीं
मां तो संसार होती है।
दीदी बुआ मौसी,
सबकी अधिकार होती है।


सब दुख सहकर मां ने
अपना कर्म बनायी है।
माता से दादी मां बनकर,
अपना धर्म निभायी है।


डी.ए.प्रकाश खांडे 
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़ जिला अनुपपुर मध्यप्रदेश मो 9111819182
[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु हमें 📳 akbs980@gmail.com पर  इमेल करें अथवा  8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें. रचना भेजने के पूर्व कृपया देखें-➤➤नियमावली

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