(एक)
//कोरोना//
प्रकृति ने ले ली करवट,यह काम किया है चटपट।
अंबर को स्वच्छ किया है,
उद्योगों को बंद किया है।
एक कोरोना ने ........
मानव को आदिम युग में भेज दिया,
सब सुख सुविधाएं,
मौत के भय ने छीन लिया।
अब दूभर हो गया,
विज्ञान के बिन जीना,
हर मर्ज के देवता चाह रहे हैं सोना।
उनको भी डरा दिया करोना।
बंधन तोड़े थे प्रकृति के हमने,
जीवो को पिंजरे में कैद किया।
उसका परिणाम यही,
कोरोना ने प्रतिघात किया।
कोरोना है प्रकृति प्रकोप,
इससे हुए मंत्र तंत्र सब लोप।
कोरोना से कुछ का हुआ है अपमान,
अब वैज्ञानिक सोच का होगा सम्मान।
कोरोना आया महामारी लेकर,
लेकिन कुछ देकर जाएगा,
इंसान यदि अबकी जागा तो,
प्रकृति पुजारी बन जाएगा।
(दो)
//भारत की बहन//
जिसकी पुरानी धोती और फटी हुई बंड़ी है।जिसकी देन जीवन की सच्चाई से महक रही है।
गरीबी लाचारी और सत्यश्रम की पूंजी है।
यह गहन अध्ययन का विषय है।
भाई भारत की वह बहन है।
तरुणाई में भी देह में सिकुड़न है।
बचपन में जवानी सरक गई,
जवानी से पहले बुढ़ापे में चली गई,
हाय!वह जो सबको जिलाती है।
आज जीने को तरस गई,
सूरज की किरणों से पहले जो जाती है।
झाड़ू,पोछा, बर्तन घरों की सफाई है।
काम सबका करती फिर भी पराई है।
आठों पहर काम करती फिर भी,
तन को लगता और पेट को पत्ता नहीं,
बर्षा हो या धूप उसके लिए कहीं छाया नहीं,
हाय!वह जो भारत की बहन है।
आज तन ढकने को तरस गई।
रचना: कोमल चंद,
(शोध छात्र)
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
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