1.
बात करना अदब से सीखा नहीं है,
झुक जाए नजर वो बेअदब सीखा नहीं है।
खड़ी होती बंगले में गाड़ियां लूट की,
लूट से वो बंगला अभी खरीदा नहीं है।
कुर्सियों का मोह किसे होता नहीं,
कुर्सियों का खरीदना अभी सीखा नहीं है।
मंजिलों के करीब होती मंजिलें मेरी भी,
लोगों के मन का मंदिर गिराना अभी सीखा नहीं है।
फक्र होता है बहुत अपनी मुफलिसी पर,
चाल-ढाल असामियों-सा अभी सीखा नहीं है।
देखता हूँ लोगों की थाली से रोटी छीनते लोगों को,
कुत्तों की तरह हिस्सा बांट करना अभी सीखा नहीं है।
पाप की पूंजी जमा करने का हुनर आ तो गया,
माँ-बाप के पुण्य का घड़ा अभी रीता नहीं है।
हर काम मुकम्मल हो, यह जरूरी तो नहीं.
देखता हूँ लोगों की थाली से रोटी छीनते लोगों को,
कुत्तों की तरह हिस्सा बांट करना अभी सीखा नहीं है।
पाप की पूंजी जमा करने का हुनर आ तो गया,
माँ-बाप के पुण्य का घड़ा अभी रीता नहीं है।
2.
हर काम मुकम्मल हो, यह जरूरी तो नहीं.
कोशिशों की हार हो, यह जरूरी तो नहीं.
अपना तो काम है सफ़र पर सिर्फ चलना,
हर बार मंजिलें मिलें, यह जरूरी तो नहीं।
किसान ने बोया है बीज, न जाने किसके भरोसे।
दे ही देगी मुआवजा सरकार, यह जरूरी तो नहीं।
निशाना लगाने का हक़ फ़क़त है शिकारी
खाली नहीं जाएगा वार, यह जरूरी तो नहीं।
माटी को देता है थाप चाक पर कुम्हार,
कुछ जाएगा नहीं बेकार, यह जरूरी तो नहीं।
अनजानी राहों पर चलने का मज़ा ही अलग है
सिर्फ मंजिलों के लिए चलें, यह जरूरी तो नहीं।
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