सोमवार, मई 10, 2021

लोक ऑक्सीजन की तलाश में, तंत्र वोट की तलाश में: डॉ. ओपी चौधरी



           विश्व प्रसिद्ध विचारक लेव टोलेस्टॉय की अमूल्य और अनुपम कृति है,"युद्ध और शांति"।उन्होंने अपनी एक कहानी " वर्क,डेथ एंड सिकनेस" को 1903 में लिखा था।आज 2020 –2021में जब सम्पूर्ण विश्व कोविड –19 से जूझ रहा है, कितना सटीक है," .........अभी थोड़े दिन ही हुए,जब कुछ मनुष्यों ने काम की अहमियत जानी।उन्होंने समझा की काम के आधार पर मनुष्य को कमतर या उच्चतर नहीं समझा जाना चाहिए।काम से हर मनुष्य को सुख मिलना चाहिए।काम ऐसा होना चाहिए की मनुष्यों के बीच एक जुटता का भाव बना रहे।अब वे समझ गए हैं कि जीवन क्षण भंगुर है और मृत्यु कभी भी आ सकती है।इसलिए जीवन का जितना भी समय हमारे हाथ में है,उसका प्रत्येक साल,महीना,दिन,घंटा और मिनट हमें प्रेम और सौहार्द्र से बिताना चाहिए।वे समझने लगे हैं कि रोग हमें एकता की ताकत समझाने ही आते हैं।इसलिए दूसरे के दुख ,बीमारी और कष्ट में उसकी मदद करना हर इंसान का कर्तव्य है"। आज के कोरोना काल में यह कितना सटीक है।काम का महत्व हम अब समझ पाए जब महामारी के कारण पिछले साल भर में लगभग 98 लाख लोगों की नौकरी गई है,यह सी एम आई ई की एक ताजा रिपोर्ट पर आधारित है।2020 –21 के दौरान देश में कुल 8.59 करोड़ लोग किसी न किसी तरह की नौकरी में लगे थे और इस वर्ष मार्च तक यह संख्या घटकर 7.62 करोड़ रह गई है। कोरोना की दूसरी लहर से कही कहीं लॉकडाउन या लॉकडाउन जैसी स्थिति के कारण, सरकारी प्रोटोकाल, दिशा –निर्देशों के कारण रोजगार के लिए दोबारा नया खतरा पैदा हो गया है।रेहड़ी और खोमचे वाले सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
               देश के अनेक भागों –मुंबई, दिल्ली,कोलकाता, सूरत,बंगलौर,अहमदाबाद आदि से पुन:बड़ी संख्या में कामगार गुजरात,पंजाब और हरियाणा से लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के अपने गांवों, हाटों,बाजारों,चट्टियों की ओर लौट रहे हैं।इनकी रोजी – रोटी तो दांव पर लगी ही है, साथ ही संक्रमण का भी खतरा बढ़ा है।सबसे ज्यादा परेशानी उत्तर प्रदेश में है, जहां पंचायत चुनाव संचालित हो रहे हैं।ग्राम प्रधान पद के प्रत्याशी लोगों को अपने पक्ष में मतदान करने हेतु बुलाते हैं।पिछले साल तो वे जब गांव आए तो  पृथकवास में 14 दिन रहते थे,लेकिन अबकी बार सीधे घर पहुंच रहे हैं और शाम को चुनाव प्रचार के उपरांत आयोजित भोज समूह में बिंदास सम्मिलित हो रहे हैं।बीमारी का खतरा बढ़ गया है।जांच के और उपचार के अभी उतने साधन हमारे गांवों में उपलब्ध नहीं हैं।वैवाहिक और धार्मिक आयोजनों में सम्मिलित होने के फेर में गांवों तक कोरोना ने दस्तक दे दिया है।किंतु यह पता लगाना मुश्किल है कि कौन कब कोरोना पॉजिटिव होता है,यदि पता चल भी जाय तो, इलाज मिलना बहुत ही मुश्किल है।गांवों में जन स्वास्थ्य के देखभाल की जिम्मेदारी आशा बहुओं की है। बिडंबना यह है की बहुत सी आशा बहुएं स्वयं प्रत्याशी हैं,वे अपने प्रचार में व्यस्त हैं,किसी को कैसे पृथक्वास में रहने के लिए कहें,क्योंकि दावत छूटेगी तो नाराजगी, और पाल्हा बदलने का डर बना रहेगा,इसलिए कोविड के प्रसार की चिंता कम अपने वोट की चिंता ज्यादा है।इस समय उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन तीस हजार से भी अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं,तीन सौ से अधिक की मृत्यु कोरोना से हो रही है।चुनाव के कारण और अधिक इजाफा हुआ है,कारण लोग मास्क, सेनेटाइजेशन,साबुन से हाथ धोना, दो गज की दूरी का अनुपालन नहीं कर पा रहे हैं, कुछ अभाव तो ज्यादा लापरवाही के कारण।प्रशासन भी क्या –क्या, कौन – कौन से काम एक साथ करे, कानून व्यवस्था पर नजर रखे या चुनाव संपन्न कराए या महामारी से उपजी विपदा में राहत पहुंचाए,ऐसी स्थिति में जब  कार्मिकों की संख्या लगातार घट रही है।स्वास्थ्य सेवाएं भी जनसंख्या के अनुपात में बहुत ही कम है।एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि देश में 6 लाख डॉक्टरों वी 20 लाख पैरा स्टाफ को कमी है।65 प्रतिशत शहरी आबादी निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर है।ज्यादातर मरीज प्राइवेट हॉस्पिटल्स या चिकित्सकों के भरोसे है,जहां तक आम आदमी की पहुंच नहीं है,वे भी कस्बों या शहरों में ही हैं।
             इस समय भारतवर्ष में प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं, जो बहुत ही अधिक है।रोज साढ़े तीन हजार से भी अधिक लोग काल कवलित हो रहे हैं।यह स्थिति अत्यंत भयावह है।जिन पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हुए, वहां कोविड गाइड लाइन को धता बताकर माननीयों ने खूब बड़ी – बड़ी रैलियां करने में मशगूल और अति उत्साह से लबरेज हो रहे थे,और यह कहते नही थक रहे थे कि आपकी इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित हमारे लिए गौरव की बात है।।रश्मि लता मिश्रा ने ठीक ही लिखा है, " त्रस्त जनता, सो रही सरकार है। उसे भी तो केवल अपने वोटों से सरोकार है।"हमारा ध्यान चुनाव की तरफ ज्यादा, कोरोना की ओर कम रहा।इस वक्त हमें सभी को राजनीति करने के बजाय मानवता की रक्षा के लिए एक जुट होकर रणनीति बनाने का कार्य करना था,लेकिन हम चुनाव जीतने को रणनीति बनाते रह गए।जब लोक रहेगा,तभी लोकतंत्र रहेगा।एक अच्छी बात थी टीकाकरण की लेकिन टीके की रफ्तार भी कम हो गई,उपलब्ध ही नहीं है।मैंने अपने साथियों के साथ 14 मार्च को  टीका लगवाया था,अब दूसरी डोज की तलाश शिद्दत से कर रहे हैं,अभी उपलब्धता नहीं थी कई दिन के प्रयास के बाद दूसरी डोज लेने का मौका मिला,यह हाल मा प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का है।महाराष्ट्र,राजस्थान, छत्तीसगढ़,झारखंड, ओडिसा जैसे राज्यों ने टीकों की कमी से केंद्र को अवगत करा दिया है।ऐसे में विदेशों से आयात करने के साथ ही,भारत में भी युद्ध स्तर पर टीकों का निर्माण तेज करना चाहिए।अमेरिका ने कच्चा माल उपलब्ध कराने का भरोसा दिया है।टीके के लिए तो मारामारी है ही, ऑक्सीजन,रेमडेसिविर और प्लाज्मा,वेंटिलेटर की मांग जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है।ऑक्सीजन और रेमडेसिविर की कालाबाजारी और जमाखोरी के कारण यह कठिनाई और बढ़ गई है।मांग बढ़ने से भी ज्यादा परेशानी जमाखोरी से हो रही है।हमारा राष्ट्रीय चरित्र उजागर हो रहा है कि हम आपदा के समय भी बजाय दूसरों का सहयोग करने के अपनी तिजोरी भरने में लगे हुए हैं।किसी ने सही ही लिखा है कि"सुबह न्यूज पढ़ी डॉक्टर गिरफ्तार है,
जीवन प्रदाता दवा का करते व्यापार हैं।" कालाबाजारी चरम पर है।पूरा तंत्र चुनाव में व्यस्त है,लोक महामारी से पस्त है।सोशल मीडिया पर खबरों पर सरकार लगाम लगाने लगी,जैसे सौ बरस पहले युद्ध या महामारी के समय तुरंत सेंसरशिप लगा दी जाती थी।लेकिन अब दुनिया तेजी से बदल रही है, हर हाथ में सोशल मीडिया तक पहुंच के यंत्र हैं।खुद माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत:संज्ञान लेकर सरकारों को चेताया है कि वे नागरिकों को अपनी तकलीफों को सार्वजनिक करने पर प्रताड़ित न करें।सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही यह सवाल उठाए हैं कि मरीजों व उनके तीमारदारों को दवाओं के लिए इधर उधर भटकना पड़ रहा है,सरकार उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करे।
          कोरोना महामारी से वास्तव में देश की स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोरियां व प्रबंधन की कमी उजागर हुई हैं।जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा प्राप्त करना हर भारतीय का मौलिक अधिकार है।इस महामारी के बीत जाने के बाद जरूरी है की हम अपने स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करें,जिससे हमें भविष्य में ऐसी विषम परिस्थिति का सामना न करना पड़े।अबकी जो गलतियां ,जो लापरवाही सरकार की ओर से हुई है, उसमें सुधार करने की महती आवश्यकता है।अभी तीसरी लहर की भी बात सामने आ रही है,इसलिए मूलभूत सुविधाओं की ओर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।अंत भी टोलोस्ताय को उद्धृत करके ही करूंगा," खुशी के क्षणों को कैद कर लो,प्रेम करो और प्रेम करने दो।इस दुनिया में केवल यही एक सच्चाई है,बाकी सब मूर्खता के सिवा कुछ नहीं"।जोहार प्रकृति!जोहार धरती!
      डा ओ पी चौधरी
एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी
*महामहिम श्री राज्यपाल द्वारा नामित कार्य परिषद सदस्य वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर*
मो: 9415694678
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2 टिप्‍पणियां:

रजनीश रैन ने कहा…

धन्य है आपकी यह रचना
सत्य और वास्तविकता का सजीव चित्र खींचती हुई
आपके सृजन-शक्ति को प्रणाम् है
ऐसी रचनाओं से हम नित सीख रहे हैं
आपका धन्यवाद्......

Unknown ने कहा…

बहुत बहुत आभार एवम् अभिवादन

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