●तीन कविताएँ●
काम अपना हो हसने - हसाने के लिये ।
जिन्दगी ये मिली कर दिखाने के लिये ।
काम हो ऐसा मस्तक हो ऊँचा सदा ,
काम होवे न और को रुलाने
के लिये ।
कभी शर्मिन्दगी की न नौमत बने ,
फर्ज होवे सदा इन्साफ के
लिये ।
लक्ष्य होवे सदा कुछ नया करने की,
लीक होते नही जिम्मेदार के लिये ।
काल उपकार की मूल्य होवे सदा,
धन्य क्षण है जो हो सेवा भाव के लिये।
दीन सेवा से बढ़कर न कार्य अन्य है ।
है जो सेवक बना बस वही धन्य है ।
काम आये पराये वह ही सम्पन्न है ।
इससे दिल है चुराये वह विपन्न है ।
सेवता है वही जो अकल मन्द है ।
सेव लेता वही जिसमें छलछन्द है ।
शुद्ध अन्तःकरण करे छल - बल तजे ।
निश्छल आचरण करे वह सकलकन्द है ।।
साई रहिये सदा स्वार्थपरता से बच ,
दागी बनने से बच बोलिये सबसे सच
कोई अच्छा कहे इसकी चिन्ता न रख ।
बुरा कहने न पाये तू कालिख से बच ।
कितना अच्छा करो निन्दा तो होना है ,
बुरे बकते हैं अच्छे की आदत में रख ।
चित्त कर ले निर्मल तू सफलगामी वन ,
भावना हो सहोदर सफल लक्ष्य रख।
//रचना//
राम सहोदर पटेल,
शिक्षक, ग्राम-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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