‼️"बचपन"‼️
काश बहुरि के दुबारा,आ जाता मेरा बचपन।
झमेला न झेलता, सदा रहता खेलता, यही तो है बचपन।।
बार-बार आता है याद, दस-ग्यारह का मियाद,
परिवार की परवरिश में, अब उम्र पार पचपन।
काश बहुरि के----------------
मातु-पिता से जिद करना,बात-बात में मचलना,
बिन रोष मांग पूरी करते,
हों चाहे निर्धन।
काश बहुरि
के-----------------
भाई- बहनों से रूठ जाना, तुरंत फिर मान जाना,
बचपन में दोस्तों से, कई बार हो जाता अनबन।
काश बहुरि के-----------------
अमराई में पहुंच जाते,
पके आम तोड़ लाते,
माली से छुपते छुपाते,
खाते मिल सखा जन।
काश बहुरि
के-------------------
लुका- छुपी का खेलते खेल,गुल्ली डंडा का मेल,
आपस में होता हेलमेल, ऐसा होता है बालपन।
काश बहुरि के--------------------
"कुशराम" की है नसीहत,
करो ना कभी शरारत,
लिखाओ सु- इबारत,कोरा कागज है बाल मन।
काश बहुरि के दुबारा,आ जाता मेरा बचपन,
झमेला न झेलता ,सदा रहता खेलता, यही तो है बचपन।।
रचनाकार-बी
एस कुशराम बड़ी तुम्मी
जिला-अनूपपुर
(मध्य प्रदेश)
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