मंगलवार, जुलाई 21, 2020

इंसान (कविता) :राम सहोदर पटेल

                         
इंसान
सोचो तो इंसान गिरगिट का नमूना है।
किसी से प्रेम करे, बैर किसी से दूना है
स्वारथ के पीछे भागे, कोर-कसर न कुछ भी राखे।
रिश्ता-नाता पीछे राखे, परमारथ दिल सूना है
सम्मुख में शुभचिंतक बनकर, बसी करे प्रिय वाणी से।
पीठ के पीछे कसर न छोड़े, भितरघात करे दूना है
लल्लो-चप्पो बात करे वह, स्वारथ सिद्धि होने तक।
झूठी शान बघारत निशदिन, चले लगावत चूना है
शेखी करे सबा शेर बने, सिख देत शिखा के शिरोमणि बन।
शक्त सूरमा यदि पड़ जाए, फिर नौ दो ग्यारह हूना है
स्वर्थार्थ हित करे प्रशंसा, धोखा-धडी में नंबर वन।
बनावटी शान सजाबत है, बना हाथी का दांत नमूना है
बक-बक बक बकबास करे, बचकानी बनाय रखे सबको।
माता-पिता को भी मात करे, चहे स्वारथ डोर पिरूना है
स्वर्थार्थ वह घुटने टेके, पाँव चूमकर मतलब सेके
मतलब सरका वह भी सरका, सरक चला चढ़ लूना है।
अपना मतलब तुमसे साधे, तुम्हारे काम में डाले बाधा।
ज्यों पृथ्वीराज की बढ़ती न सह जयचंद लगाया हूना है
इस कामचोर कुटिल कपटी को सहा न जाय पराय विभूती।
ज्यों सकुनी मामा पांडव को लाक्षागृह में भूना है
झूठी शान बघारत बढ़-बढ़ बन बफादार का ढोंग करे।
मन में पाप है मुंह में  जाप है, अंतर्मन सब सूना है
मुंह  में राम  बगल में छूरी, रखे पात्रता इसमें पूरी।
शिष्ट सिखावै औरन का, अशिष्ट स्वयं दिन दूना है
राम सहोदर सिखबन मानो, लोक लाज को भी पहचानो।
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