बाबा ने पेड़ लगाए हजार,
उपवन में कोयल की थी गुहार,
भ्राता प्रेम से खेल रहे
हर कोने में थी किलकार
बाबा ने पेड़ लगाए हजार।
बाग में फूल खिले थे
फल से लदे थे डार,
बाबा ने पेड़ लगाए हजार।
बाबा के बेटे बड़े हुए,
जिद में अपने अड़े हुए
अलग-अलग बना लिए द्वार,
बाबा ने पेड़ लगाए हजार।
हमने उपवन बांट लिए
तृष्ण बुझाने पेड़ काट दिए,
लहराती दिग्गज पेड़ बच गए चार
बाबा ने पेड़ लगाये हजार।
प्रेम बटोही विदा हुए,
उपवन से फूल जुदा हुए,
फल से लदे। नहीं डार
बाबा ने पेड़ लगाए हजार।।
© अंजली सिंह
उच्च मा शिक्षक, शा.उ.मा.विद्यालय भाद
जिला-अनूपपुर (मध्यप्रदेश)
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