बुधवार, मई 06, 2020

विकास से बात-चीत:कोमल चंद

        

विकास से बात-चीत

विकास! तुम अभी भी बच्चे हो।
तुम बढ़े नहीं छोटे हो क्यों?
मैं शोषण का शिकार हो गया।
इसलिए मेरा विकास नहीं हो पाया।
बताओ कैसे?
मेरे लिए जो राशन आता।
वह बीच में अटक जाता।
उसे कोई गटक जाता।
और मैं भूखा रह जाता।
इसलिए मेरा विकास नहीं हो पाया।
क्या तुमने खेती नहीं की
मैंने खेत जोता और बोया।
परंतु सींच नहीं पाया।
सरकार ने जो बांध बनाया।
उसका पानी खेतों तक नहीं आया।
कारखानों नें बीच में रोंक लिया।
और मेंरे खेत को सुखा दिया।
मैं फिर से भूखा रह गया ।
इसलिए मेरा विकास नहीं हो पाया।
क्या इसकी शिकायत की ?
हां शिकायत करने शहर गया।
पर साहब से नहीं मिल पाया।
उस दिन फिर भूखा रह गया।
क्योंकि उस दिन नहीं कमाया।
इस तरह मेंरा हक
मुझ तक नहीं पहुंच पाया।
 मैं विकास से वंचित रह गया।
अब दुःखी हूं यह सोच कर।
नन्हे-मुन्ने बच्चों को देखकर।
इनका उद्धार कैसे होगा।
क्या कोई इनकी खबर लेगा
काब्य रचना:
कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी 
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा 
मोबाइल 7610 1035 89

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7 टिप्‍पणियां:

Deepak jaiswal ने कहा…

Nice poetry....

सुरेन्द्र कुमार पटेल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सुरेन्द्र कुमार पटेल ने कहा…

लेखकीय जिम्मेदारी है कि वह अपने आसपास की विद्रूपताओं को निर्वस्त्र करता रहे। ढोल के पोल को खोलता रहे। आपने आज विकास के सच को अपनी काव्य पंक्तियों के माध्यम से वस्त्रहीन किया है। एक सुबोध, सुगम शैली में। बहुत-बहुत बधाई। बहुत-बहुत धन्यवाद।

कोमल चंद कुशवाहा ने कहा…

आदरणीय सुरेंद्र जी सादर प्रणाम

जिस तरह सूर्य के प्रकाश में कमल खिलता है।
उसी तरह आपके मार्गदर्शन से ही कमल लिखता है।।
यह आपकी ही प्रेरणा है।

कोमल चंद कुशवाहा ने कहा…

आदरणीय सुरेंद्र जी आपका स्नेह मिला बहुत-बहुत आभार प्रकट करता हूं।

अजय जायसवाल ने कहा…

शोषण पर करारा व्यंग किये है सर

अजय जायसवाल ने कहा…

Aaj is Tarah ki rachnao ki jarurat hai

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