कोरोना कहर-मजदूर (महिला पर असर)
बैरन होगे कोरोना, मैं कइसे करूं-2
लॉकडाउन है देश में लागू
घर से बाहर कैसे मैं भांगू
कहूं घरहिं में दुबको ना, मैं कइसे करूं
---- बैरन होगे कोरोना, मैं कइसे करूं-2
घर मां रहिके नई है गुजारा
बाहर जाऊं पुलिस ललकारा
भूखे रहगे मोर छौना, मैं कइसे करूं
---- बैरन होगे कोरोना, मैं कइसे करूं-2
अब सखियों से मिलना जुलना
हाथ मिलाना बातें करना
लागै सब छूट गयो ना, मैं कइसे करूं
---- बैरन होगे कोरोना, मैं कइसे करूं-2
कहते साबुन से कर धुलना
मास्क लगाना मुंह को ढकना
दूरी बनाके रहो ना, मैं कइसे करूं
---- बैरन होगे कोरोना, मैं कइसे
करूं-2
अब मैं जान्यों एखर कहानी
‘कुशराम’ जी ऐसे बानी
कहते मन में धरो ना, मैं अइसे करूं...
---- बैरन होगे कोरोना, मैं कइसे करूं-2
कोरोना प्रतिज्ञा
कोरोना को है भागना, प्रण कर लो रे साथी
लॉक डाउन का पालन करना।
घर से बाहर नही निकलना॥
सबको यही समझाना, प्रण कर लो रे साथी
हाथों को साबुन से धोना।
साफ़ रखो घर के हर कोना॥
मुंह में मास्क लगाना, प्रण कर लो रे साथी
एक मीटर का अंतर रखना।
एक दूजे से दूर ही रहना॥
दूरी से बातें बताना, प्रण कर लो साथी
खांसी औ छींकत के समय मां।
कपड़ा-टिश्यू रखना मुंह मां॥
इतना ध्यान दिलाना, प्रण कर लो रे साथी
हाथ किसी से नहीं मिलाना।
हाथ जोडकर फर्ज निभाना॥
सबको सीख सिखाना, प्रण कर लो रे साथी
भीड़ जहाँ हो, वहाँ न जाना।
भीड़ को अपने घर न बुलाना॥
लोगों को ये बतलाना, प्रण कर लो रे साथी
इतना सब जो मन में घरेगा।
कहें ‘कुशराम’ कोरोना भगेगा॥
सबको ये फर्ज निभाना, प्रण कर लो रे साथी
कोरोना को है भगाना, प्रण कर लो रे साथी
(रचना दिनांक-01/04/2020)
© बी एस कुशराम
प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय बड़ी तुम्मी
विकासखंड-पुष्पराजगढ़, जिला-अनूपपुर
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- आपसे अनुरोध है कि कोरोना से बचने के सभी आवश्यक उपाय किये जाएँ।
- बहुत आवश्यक होने पर ही घर से बाहर जाएँ, मास्क का उपयोग करें और शारीरिक दूरी बनाये रखें।
- कम से कम 20 सेकंड तक साबुन से अच्छी तरह अपने हाथों को धोएं। ऐसा कई बार करें।
- आपकी रचनाएँ हमें हमारे ईमेल पता akbs980@gmail.com पर अथवा व्हाट्सप नंबर 8982161035 पर भेजें। कृपया अपने आसपास के लोगों को तथा विद्यार्थियों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करने का कष्ट करें।
1 टिप्पणी:
कोरोना एक बीमारी ही नहीं है, असंख्य अप्रत्याशित परिस्थितियों की जनक है। जीवन को नित नए ढंग से परिभाषित करने की परिस्थिति है। आजीविका के लिए घर छोड़कर गांव से जब पुरुष दूसरे शहर जाता है तो आम भाषा में कहते हैं, 'परदेश' गया है। कोरोना की बीमारी से उपजी आपदा ने ऐसी परिस्थिति निर्मित की कि अपना ही देश पराया हो गया। मजदूर अपनी मजबूरी का भार अपने कंधों पर ढोने के लिए विवश था। ऐसे में घरेलू जरूरतें के लिए पैसों की आपुर्ति हमारे गांव के ही आसपास हो, ऐसा विमर्श प्रकट हुआ है। आपकी कविता उस मजदूर की मनोदशा का सटीक वर्णन करती है। भावाभिव्यक्ति है, लय है और जिस परिस्थिति की कविता है,प्रयुक्त शब्द उस परिस्थिति की व्याख्या करने में पूरी तरह सक्षम हैं। बहुत-बहुत बधाई। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
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