शनिवार, मई 16, 2020

विवश (कविता): मनोज कुमार चंद्रवंशी

** विवश ** (कविता)

"विवश"वश निज निकेतन दिक् भ्रमित हैं।
सब इस माँ भारती के  प्रवासी  श्रमिक हैं॥

कुछ  श्रमिक पराश्रय में ठहरे  परदेश में।
अब  बहु  वापसी  हो  रहे  हैं  स्वदेश  में॥

कुछ  मलिन वदन  कुछ  निर्वासन वेष में।
बहु जर्जर तन  बिखरे  हुए  निज केश में॥

कुछ अभी भी  पगडंडियों  में  अटके हैं।
कुछ कुटुंब अभी भी परवश में भटके हैं॥

निज  उदर   पोषण  की   प्रतिपूर्ति   में।
निमिष मात्र प्राप्त नहीं  प्राण  स्फूर्ति में॥

अब गृह  पदयात्रा का पथ  खो चुके  हैं।
अब "विवश" होकर  यत्र - तत्र  रुके  हैं॥

कुछ  तरु  तर  निज  आश्रय  बनाए  हैं।
कुछ रेल के पटरियों में  प्राण  गंवाये हैं॥

वे सब मनभावन इन  नयनों  के नूर हैं।
अब उन्हें पथ में  क्षुधा पीड़ा  जरूर है॥

क्योंकि वे निज  जिंदगी  से  मजबूर हैं।
उनके जीवन का  सपना  चकनाचूर है॥

नवनिहाल व्याकुल हैं  इस अवरोध से।
तन विदग्ध भीषण आपदा के क्रोध से॥

मुखाग्नि दग्ध  इस निर्धनता के बोझ से।
वे"विवश"हैं जीवकोपार्जन की खोज से॥

आफत अंधियारा छाया  निज  पग तले।
उन्हें  पहुँचना  सदन में  प्राण जाए भले॥

आह! वे  नि:सहाय  विपदा का  दिवस  है।
कहे 'मनोज' वे परिस्थितियों से "विवश"हैं॥

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                         रचनाकार
मनोज कुमार चंद्रवंशी (शिक्षक) ग्राम बेलगवाँ
    पोस्ट उमनियाँ विकासखंड पुष्पराजगढ़
           जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश

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