बुधवार, मई 13, 2020

ग़ज़ल: बलजीत सिंह बेनाम


ग़ज़ल
कभी इन्सां है क्या समझा नहीं था
ख़ुदा  को  इसलिए   पाया नहीं  था

हमारा  प्यार रूहों  का  मिलन  था
फ़क़त जिस्मों तलक़ फैला नहीं था

बिताई उम्र सारी मुफ़लिसी में
मगर ईमाँ कभी बेचा  नहीं था

अता की बज़्म को जिसने बुलन्दी
उसी  का   बज़्म  में चर्चा नहीं था

परखने पर  निराशा हाथ आती
ज़रूरत पर तभी परखा नहीं था


रचना:
बलजीत सिंह बेनाम
जन्म तिथि:23/5/1983
शिक्षा:स्नातक
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
उपलब्धियां:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित सम्पर्क सूत्र: 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी 
मोबाईल नंबर:9996266210
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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

वाह।

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