गुरुवार, मई 14, 2020

हे! निर्दय पथ: सुरेन्द्र कुमार


हे! पथ, तुमने यह रूप विकट उर में क्यों धारे।
निर्दय बन तुमने पथिकों के क्यों प्राण निकाले॥

तुझ पर वे जब चलते, तुम क्यों ना सजल हुए?
देख विकलता उनकी, तुम क्यों ना विकल हुए॥

हे! पथ, क्या तुमने कर्तव्य पथ पर चलना नहीं सुना।
फिर क्या कारण है तुमने, उनके विरुद्ध कपट रूप चुना?

घुटनों के बल चलने वाला छौना, मां के संग पथिक बना।
जिनके श्वेत बिंदु से जन्मे तुम, उनके पावों से लहू ढला॥

हे! पथ विवश रहे तुम, या निर्लज्जता की तूने चादर ओढ़ी?
है तूने बहुत मूल्य वसूले, उनके जाने की अपनी ड्यौढ़ी॥

कितने ही पिता शर्मसार हुए, तुमने देखे खूब तमाशे।
बिलख रहे रोटी को बच्चे, जिनको देते वे खील बतासे॥

भूला-भटका कहते उसको, पथ छोड़ कहीं जाए चल कर।
किन्तु दर-दर यहां भटक रहा है, हर कोई चलकर तुम पर॥

खाकर सौंगन्ध तुम्हारी, सत्य की देते साक्षी हे! अविचल।
किस अपराध की मिली सजा, अपने भाव कहो निश्छल॥

तेरे सृजनहार आज भूखे-प्यासे, दम तोड़ते तुझ पर।
इतनी खामोशी क्यों है तेरी, छाई कृपड़ता कैसी तुझ पर॥

हे पथ! चुप रहकर भी बनोगे तुम पाप साक्ष्य के भागी।
तुम भी पहुंचाए जाओगे रसधार, सृष्टि चेतना जो जागी॥

तुम रहोगे नहीं अखंड, तुम्हारे भी टुकड़े-टुकड़े होंगे।
इस मंजर के हैं जो अधिकारी, शेष न उनके मुखड़े होंगे॥

यह विकल शोक तूने, अपनी छाती पर हैं जो पाले।
निश्चय ही मिलेगा कर्मदण्ड का भाग, लेखा अभी संभाले॥

पर हे! पथ इतना तो बतलाओ, निर्दय हृदय कहां से लाए?
क्या तुमने भी आज आपदा में राजनीति से हाथ मिलाए॥

भय, चीत्कार में तड़प रही चहुँ ओर, और विछ रही हैं लाशें।
कैसा गर्वित स्वरूप है रे! तेरा, तू ताक रहा फिर भी आकाशें॥

हे! पथ ऐसी अकड़ तेरी रही नहीं, रक्त सने कुंकुम से करवाए टीके।
तूने की है राजनीति से यारी, जिसके चेहरे पड़ते कभी न फीके॥

©सुरेन्द्र कुमार पटेल
ब्यौहारी, जिला-शहडोल
(मध्यप्रदेश)
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