सम्बन्ध होता है
जो गुरू और शिष्य का।
सम्बन्ध वही होता
है भक्त और भगवान का॥
शुद्ध अन्तःकरण से
यदि भक्त भगवान को पुकारे।
तो संकट से भगवान
भक्त को क्यों न उबारे॥
शिष्य यदि चाहे
गुरू से लेना पूर्ण ज्ञान।
तो गुरू भक्ति का
तो रखना ही होगा ध्यान॥
एकलव्य ने रखा
अपने गुरू का पूर्ण सम्मान।
तो पाया उत्तम ज्ञान और अर्जुन जैसा
सम्मान॥
दुर्योधन ने
गुरुकुल में जीत न पाया गुरू का ध्यान
ईर्ष्या और अभिमान के कारण रह गया अधूरा ज्ञान॥
ईर्ष्या और अभिमान के कारण रह गया अधूरा ज्ञान॥
गुरु कुल में गुरु
और शिष्य के रिश्ते होते थे निराले।
इसीलिये तो
शिष्यों को ज्ञान मिलते थे आले॥
गुरुकुल का
शिष्य गुरु को पूजता मानकर भगवान।
नियमित रहकर
गृहकार्य करता पालन करता फरमान॥
तभी तो शिष्य
होते कर्ण अर्जुन भीम सा महान।
तब गुरु का बढ़ता
सम्मान माना जाता उसे भगवान॥
आज के शिष्य की
रूचि स्वभाव बिगड़ी है।
बिना पढ़े लिखे
ही पाना चाहता है डिग्री है॥
न गुरु की कद्र
जाने न गुरु की माने बात।
जब चाहे कक्षा
में आवे जब चाहे निकल जात॥
आज का शिष्य
गुरु को समझता अपना नौकर।
और अभिभावक भी
तो गुरु ही देता रहता ठोकर॥
शिष्य में
उत्सुकता ही नहीं गुरु बने गरजमंद।
होम वर्क देखन
के टाइम हो जाता वह नजरबंद॥
ज्ञान को समझो
वह बीज है हसीन।
इसे उगाने के
लिए चाहिए उपजाऊ जमीन॥
उपजाऊ भूमि में
ही हो होता सही अंकुरण।
परिश्रमी छात्र में ही होवे ज्ञान का प्रस्फुटन॥
अच्छे विचारों
के बीज से होते अच्छे फसल हैं।
अच्छी आदतों के बीच
से होते चरित्र असल हैं॥
अंधे को दर्पण
दिखाने से होवे कोई फायदा नहीं।
कहे सहोदर
ज्ञानार्जन हेतु चाहिए इरादा सही॥
रचनाकार:राम सहोदर पटेल,एम.ए.(हिन्दी,इतिहास)
स.शिक्षक, शासकीय हाई स्कूल नगनौड़ी
गृह निवास-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल(मध्यप्रदेश)
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