मंचःआपस की बात सुनें
-रजनीश (हिन्दी प्रतिष्ठा)
सुन्दर-सा यह मंच,
रस-गुंजन का यह मंच
मन को मन से जोड़े रखती
यह सर्वजन का मंच।
इसने जोड़ा कला-शक्ति को,
और जीवन, विज्ञान
आनंद समेटे अपने भीतर
चलता जा रहा अविराम।
आओ सब मिल बैठें
और ''आपस की बात सुनें''
इस मंच के श्रृंगार में
फूलों वाली राग चुनें।
यहाँ आपस की बात
हृदय-द्वार से उतरता है
गीतों की गुंजार यहाँ
सबके मन को भरता है।
है ये ब्लाॅग ''नव-निहालों'' का
नई पीढ़ी की राह यहाँ पर
इस ब्लाॅग में ''काव्य-गुंजन'' होता
सच, नूतन धरती सजती जहाँ पर।
नई चाल है, नया राग है
इस ब्लाॅग के सुन्दर रूप
सूरज सम ''तेज -शक्ति'' है इसका
खिलता अपना इसका धूप।
इस धूप में सूप निकालता है यह ब्लाॅग
यह इसकी उत्तम पहचान है
नई पीढ़ी के सुसज्जन हेतु
इसका विशेष अरमान है।
यह मंच जैसे शीतल वृक्षों का वृन्द
संचालन में जुट जाते सुर और इन्द्र
पग-पग नूतन काव्य पंक्तियाँ
मन को मन भर रस देते
ऐसा हर क्षण लगता जैसे
कला-शक्ति को यह सेते।
इस मंच के पूजन में
''साहित्य-शक्ति'' समर्पित है
''आपस की बात सुनें'' सर्वजन
ह्दय-द्वार को पुष्पित राग अर्पित है।
कवियों की यह कला जगाती
और सजाती ''जीवन-रेख''
आह्वान करती दिव्य पुंज को
यह मंच हमारे लिए विशेष।
है ये ब्लाॅग साहित्य-सेवकों का मंच
यहाँ जीवन गतियों की धार बहे
लेखक-वृन्द के प्रखर मेधा से
सच, यह ब्लाॅग खूब सजे।
इस ब्लाॅग के सुन्दर सपने हैं
जो नई पीढ़ी के अपने हैं
भावों के ऊपर शब्द चढ़ाकर
यह नित-प्रतिदिन ज्योतित करता है
सर्वजन का ''हृत-बिम्ब'' छूकर सबको मोदित करता है।
लेखक लेते मधुर बलैया
इस ब्लाॅग का हरदम
हरियाली ही हरियाली है
और चतुर्दिक छाई सबनम।
इस मंच में लगता अमराई है
जैसे छाई चतुर्दिक मधुराई है
''प्रकृति-धरा'' के दिव्य अलंकरण में
'कवि-दल' की गीत साथ सहनाई है।
यह मंच लोगों को सुनाता
शीतल मीठी-मीठी राग
सुनने से सब ठण्डक लगता
चाहे लगी हो कैसी आग।
कवियों की यह टोली
इसमें बसता कवियों की राग
साहित्य सृजन का यह सुन्दर मंच
हे कलाशक्ति! अब तू जाग।
आपस की बात, मन की बात
चल, अब इस मंच से सुनें
लिखकर अपनी मनसा खुद
जीवन अपनी स्वयं बुनें।
इस ब्लाॅग का 'प्रकृति' को सलाम
माँ धरती को हृदयबंध प्रणाम
''कवि-दल'' को न्योछावर शान
शीतल स्नेह नई पीढ़ी के नाम
आशीष दो हे! विधाता, हम करें अपना काम
सर्वजन करें अपना काम।
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