प्रकृति की छवि निराली
अनुपम छटा बिखेरती है,
हरीतिमा की खुशहाली।
विटप जगत मनमोहक,
प्रकृति की छवि निराली॥
पावस ऋतु के आगमन में,
धन धान्य की बालियाँ।
हर्षित नजर आते हैं,
नित खिलती है कलियाँ॥
सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है,
पुष्पों पर भंवरों का गुंजान।
लहलहाती फसल देती है,
एक मनमोहक सा मुस्कान॥
जब तुषार हो द्रुम में,
पय सादृश्य धवलता।
जब पड़ता है रवि रश्मि,
रजत सा उज्जवलता॥
प्रकृति है निज सखा,
अतरंग जीवंत चित्रण।
प्राप्य है शुद्ध समीर,
नाना सौंदर्य का मिश्रण॥
कानन में सुमन खिले,
खेत, खलिहानों
में पलाश।
हिय आश्रय के लिए,
करना प्रकृति की तलाश॥
विविधता पूर्ण प्राकृतिक
छवि,
अनुपम मनोहरी दृश्य।
प्राकृतिक औलिकता अतरंग में,
सुंदर प्रकृतिक परिदृश्य॥
हमने प्रकृति की गोद में,
आनंद की अनुभूति किया।
प्रकृति भरा वैभव से,
खुशियों की संपदा भर दिया॥
काव्य रचना:मनोज कुमार चंद्रवंशी
1 टिप्पणी:
Sach aapne prakriti ki kyariyon se sheetal raag ki bauchhar kar di hai.. aapke kalashakti ko salam hai....
एक टिप्पणी भेजें