स्वप्न एक झरोखा
स्वप्न तभी तक स्वप्न है जब तक कि आंखें न खुलें। आंखें खुलते ही हकीकत सामने आ जाती है। पर इसके विपर्याय बात करें तो आंखों का समय पर खुल जाना भी सही है वरना बहुत सी हकीकत सी लगने वाली चीजें भी स्वप्न में बदल जाती हैं।
यह दौर उस पहलू का है जब व्यक्ति अपने उम्र और देश दुनिया की चकाचौंध में खोया रहता है। जिससे व्यक्ति की आंखों पर वास्तविकता की झलक भी नहीं पड पाती है। अगर हम यह कहें कि व्यक्ति दिवास्वप्न में खोया रहता है तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। समय का एक दौर युवावस्था जिसे तूफान के काल की भी संज्ञा दी गई है, के काल में व्यक्ति वास्तविक परिदृश्य से कोसों दूर अपने विचारगाथाओं को गढ़ रहा होता है। जो उसे संसार में व्याप्त क्रियाकलापों के मध्य जीवन संघर्ष के ज्ञान से दूर किए हुए होता है। जीवन के लिए संघर्ष एक सूक्ष्म जीव से लेकर विशाल जीव तक अपनी जीवन अवधि में करते हैं और जीवन का यह काल भी इनसे अछूता नहीं है। पर व्यक्ति स्वप्न के जिस समुंदर में अपने विचारों का गोता लगा रहा होता है वह पूर्णत: काल्पनिक है। और इसी काल्पनिक दृश्य को व्यक्ति अपने वास्तविक जीवन में उकेरने के लिए अपने जीवन तथा सांसारिक क्रियाकलापों के मध्य संघर्ष करता चला जाता है। इसी प्रयास में जीवन के बहुत से गूढ़ तत्व समय के साथ इसी धरा पर विलीन हो जाते हैं। मैं यह नहीं कहूंगा की स्वप्न के काल्पनिक परिदृश्य गलत हैं पर इन काल्पनिक विचारों के पीछे अंधा होकर भागना गलत है और यह एक समय के बाद हमारे वास्तविक जीवन से ओझल हो जाते हैं। वरन मैं यह कहूंगा कि स्वप्न हमारे ही विचारों का मंथन है जिसे वास्तविकता के साथ बहुत ही संयम से समेटने की आवश्यकता है।
अतः स्वप्न खुली आंखों से देखें जिनमें विचारों के साथ सांसारिक जीवन का संघर्ष भी झलकता है, जिसको पाने में व्यक्ति जीवन संघर्ष की वास्तविकता से भेंट करता है तथा जीवन के मूल्य को भी प्राप्त करता है।
आलेख: सतीश कुमार सोनी
जैतहरी, जिला-अनूपपुर (मध्य प्रदेश)
2 टिप्पणियां:
यह जीवन बहुत अद्भुत है। वास्तव में यह हकीकत और सपनों के बीच बुनी गई बहुत महीन कारीगरी है। सपने न हों तो जीवन नीरस लगने लगता है और यदि हों तो उसके झूठा ठहरने का भय । फिर बात आती है कि इंसान सपनों को कैसे सीमित करे। सीमित करे कि न करे।...इसी उधेड़बुन को आपने आलेख में चित्रित करने की कोशिश की है। ...जो छूट गया वह यह कि सपनो के सौदागरों पर ध्यान नहीं गया जो सपने दिखाते हैं और फिर उन सपनों की आड़ में लूटते रहते हैं। आलेख की शैली बहुत अच्छी लगी। बहुत ही कोमलता से आपने जीवन का कड़ा यथार्थ लिख दिया। बधाई।
आपने अपने शब्दो को शामिल किया उसका दिल से धन्यवाद।
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