माँ मेरे मन की बगिया में इक नूतन फूल लगा देना,
सद्भावों की गीत बुनाकर हृत मेरा सजा देना।
फूल बनकर कल उभरूँगा,
तेरे चरणों के रजकण से,
बस माँ मेरे हृत गति शाान्ति करा देना।
माँ की हाथों बनी मिठाई,
कितनी मधुकर लगती भाई।
मेरी तोतिल बोली,
माँ के कानों में मिसरी घोली।
माँ कहती आ जा बेटा पढ़ना तुझे सिखा दूँ मैं,
सुबह-सुबह स्नान कराकर माथे तिलक लगा दूँ मैं।
सज-धज बन जाओगे तुम अच्छे बेटू ,
नाम तुम्हें मैं दूँगी रम्मू सेठू।
आ बेटा कुछ हलक सुखा ले,
माँ के हाथों भोजन खा ले।
माँ लेती तेरी एक परीक्षा,
लघु जीवों प्रति तेरी क्या इच्छा?
बच्चा बोला माँ सेवा है,
बस ‘अन्तर’ मन में मेवा है।
जगते-सोते सेवा-भाव सजाऊँगा,
बस, बस मैं अपनी माँ का ‘अन्तर-मन’ सहलाऊँगा।
काव्य रचना:रजनीश
ग्राम+पोस्ट-झारा, तहसील-सरई, जिला-सिंगरौली (मध्यप्रदेश)
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2 टिप्पणियां:
बहुत ही मार्मिक पंक्तियाँ है
बहुत ही मार्मिक पंक्तियाँ है
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