कुण्डलियाँ

*कुण्डलियां* (1 ) गुण कपास का संत सा, फल नीरस बेजान । तन -मन उज्जवल तंतु से , छिद्र छिपाये आन। छिद्र छिपाये आन ,निभाये साथ सुई से । वह छिद्र करे निर्मम ,यह घाव भरे रुई से । विविध कष्ट सहकर खुद ,परांग छिपाई चुन- चुन। करे सहोदर कर्म ,संत सा कपास का गुन ।। (2) भला भलाई ही करें ,नीच निचाई नित्य । सूजी बेधे दिव्य तन, धागा करे पवित्र ।। धागा करे पवित्र ,प्रवृति न बदली जाती । अमिय देत अमरता, मृत्यु गरल से आती । दुष्ट कर्म अनरथ करें , संत सदा सन्मार्ग चला । संतन संग सहोदर ,दुष्ट करे आचार भला ।। ‌ (3) हांथ अगर जुड़कर रहे , तो बन जाए प्रणाम । वाणी में नरमी रहे ,बन जाए सब काम ।। बन जाए सब काम ,सुख भोग रहे भरपूर । शांति व सम्मान बढ़े , हो सकल आपदा दूर । सदाचार सच्चाई , का कभी न छोड़े साथ। होवे चमन सहोदर , यदि जुड़ कर रहते हाथ ।। (4) जग में सरिता ताल सम , लोग अनेकानेक । अपने वाढ़न ही बढ़े ,अपने बुद्धि विवेक ।। अपने बुद्धि विवेक , पूर्णता अन्य न भावै । संपूरन निज मान , खुशी मन माहि मनावै । रत्नाकर विशाल दिल,पूर्णचंद्र सा दिखे उमंग। दीर्घ लहर से मुदित ,सीख सिखाए सारा जग ।। -राम सहोदर पटेल, शिक्षक, सनौसी

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