मान देश का (कविता)
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जय जय मां भारती
उदयांचल से अस्तांचल तक।
हेम शिखर से वारिधि तल तक।
हो अखंड वैभव मां तेरा
चहुं दिशि गूंजे आरती।
जय भारत जय भारती।।
जगमग ज्योति जले आंगन में।
ओम् उच्चरित हो कण-कण में।
देव बधूटी तेरा आंचल,
हरदम रहें संबारती।
जय भारत जय भारती।।
देव तरसते हैं आने को।
तेरा पावन रज पाने को।
आदिशक्ति लक्ष्मी भी तुझपर।
धन-वैभव,यश बारतीं।
जय भारत जय भारती।।
पुन्य धरा है तू राघव की।
परम प्रेमिका है माधव की।
सीता तू ही तू राधा है।
दूनिया तुझे पुकारती।
जय भारत जय भारती।।
तुमने वेदों को उपजाया।
शान्ति-शौर्य दोनों सिखलाया।
तू उर्वरा शक्ति सम्पन्ना।
वीर सदा अवतारती।
जय भारत जय भारती।।
रत्नगर्भिणी तू जग माता।
हरिप्रिया जन मन सुखदाता।
रक्त श्वेत अरु हरित रंगत्रय।
चारु चुनरिया धारती।
जय भारत जय भारती।।
रवि नित प्रथमहिं करत सबेरा।
जग यशगान करे नित तेरा।
अवनि और अंबर में दश दिशि।
गूंजे तेरी आरती।
जय भारत जय भारती।।
रचना :
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