मंगलवार, जून 29, 2021

ओरहन :बघेली कविता-अशोक त्रिपाठी माधव



ओरहन :बघेली कविता

आपन लिहा सम्हार जमाना।
बात-बात पर दिहा ना ताना।
पहिले खुद के टेंटर निरखा,
फेर कहा दुसरे का काना।।

चोर आजु कोटबार का डांटय।
सूध के मुंह का कूकुर चाटय।
आजु हियन अंधेर मचा हय,
इहां लुटइया बायन बांटय।।

करकस कउआ गाबय गाना।
कोइली के अब नहीं ठिकाना।
उहौ उतान फिरै अब माधव,
रुपिया किलो खाय जे दाना।।

अंधे पोमैं कूकुर खांय।
दुर-दुर कहैं ता मारे जांय।
राज करैं अब जबरा-लबरा,
सत्तमान के दइउ सहांय।।

जे घोड़े के पायेंन धाबय।
ओके कइत अढ़इया आबय।
धक्का खाय सेमाली काकू,
रामपदारथ मजा उड़ाबय।।

एकर लाई उहां लगामैं।
एक-दुसरे के घर फोरबामैं।
गली-गली मा भेदी बगरे,
घर-घर, मेहरी-मनुस लड़ामै।।

अइसन बिगड़ा हबै समाज।
आबा लड़िकोहरिन के राज।
खानपान पहिनाउ बदलि गा,
संसकार मा परि गय गाज।।

केखा कही अउ केसे रोई।
हमहूं आपन दीदा खोई।
अब ता केबल एक सहारा,
करिहैं राम उहै अब होई।।

पीठ देय जस बहय बयार।
इहय आय करतब्ब हमार।
जे बइहर के उलटा भागय,
ओखर हंसी करय संसार।।

अबहूं भरे मा चेतय चाही।
परे रही ना घुरबा साही।
अइसन कउनौ जुगुत बनाई,
आबय बाली रुकय तबाही।।

रचना :
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