थिरक उठे वन
घुमड़-घुमड़, घमाघम, काले-काले घन।
पपीहा मन मस्त मगन
थिरक उठे वन॥
मानो कि साज चला सैन्य चतुरंग।
गरजन घनघोर करे नाचे सारंग॥
यामिनी सी दिवा लगे घिरे घटा तरनी।
दामिनी दमक चमक जाय नहीं बरनी॥
वर्षा के बारिद चिंग्घाड़ रहे गज सम।
ज्यों गर्मी मिटाने दिखाये पराक्रम॥
वर्षा के नीर से है धरती सराबोर।
झर-झर है झरना झरे शोर चहुँओर॥
मानसूनी साम्राज्य खगदल का किलोर।
जीवजन्तु आह्लादित ले सरिता हिलोर॥
बीथिन में कीच मची श्यामल है धरती।
फसलों की बोनी शुरू बखरों से करती॥
भूमिपुत्र भूमि में चलाने चला हल।
डाल रहा बीज नया बैलों के बल॥
घटाओं के घटते घटी निर्मल आकाश।
इन्द्रधनुष विविध वर्ण होता परगाश॥
पौधा लगाने को कर लो अब तैयारी।
यहै मास उत्तम है रोपण को सारी॥
हलचल चहुँओर मची खुशियाँ हैं छाई।
सहोदर है ज्यादा खुशी ठण्डक जो आई॥
रचनाकार:
1 टिप्पणी:
बहुत शानदार सर
आपने बादल व प्रकृति का अच्छा संगम किया है
एक टिप्पणी भेजें