रिश्ते
सालों साल पहले की
मुलाकात में किये वायदे,
निभाने की चाहत है आपको आज मुझसे।
बेशक इन कमीजों के
धागों के रंग नही बदले,
इनके भीतर का शरीर
बदल रहा है रोज तबसे॥
शरीर ही से तो बंधा है मन लगाकर सख्त गाँठें
मन अनुगामी हुआ है शरीर की कुछ जरूरतों से।
आपको विस्मृत किया तो नहीं हूँ जान बूझकर,
खुद ही विस्मृत हुए होंगे बने नित नये रिश्तों से॥
वो हमारी मुलाक़ात में आपका रिश्तों का रोपना,
सप्रयास था या वह बन गया हो खुद ब खुद से।
कुछ जरूरतें रही होंगी जड़ों को खाद पानी की,
उन्होंने लिया हो मनमर्जी से पूछा नहीं है मुझसे॥
कुछ-कुछ याद है
मगर आपके तलाश की यादें,
फिर सोचा कौन याद रखता है इतने पुराने किस्से!
ऊँची-ऊँची हवाओं के रुख को जब बदलते देखा,
बिखरता गया फिर वो एहसास भी हिस्सेदर हिस्से॥
मगर आश्चर्य है आज आपका दरख्तों का सीचना,
आज आपको मतलब है मिटने या सूखने से।
किसी के समक्ष गवाही
देनी हो शायद आपको,
लो मिटता हूँ मैं बनता हो काम यदि मेरे मिटने से॥
वो दो पत्तों वाला पौध शाखों में बंट गया होगा,
बेउम्मीद है वैसा
ही उसका हो जाना फिर से।
और मौसम भी तो
नहीं रहा अब पहले जैसा,
यदि वह चाहे भी हो
जाना पौध किसी तरु से॥
वो उस वक़्त की
बातें थीं, थी तब दूसरी भाषा,
कोई फायदा नहीं है
अब उस दौर में लौटने से।
ये जो बचे हुए
पर हैं रिश्तों के मत खोलो,
उड़ान भर नहीं सकते नुच जायेंगे मात्र खुलने से॥
सूरज भी नहीं रहता
वही, धरती भी नहीं रहती,
न वही रहने की
उम्मीद है हवा या गगन से।
पहाड़ों के भी पर
उखड गए दिखने लगा धूसर,
रिश्ते भी आजकल
रिसते हैं रंगों की रंगन से॥
यदि मन को खींचकर ले
जाने की कोशिश करूँ,
तो मांगता है वही
कोशिका, भरा पुरा स्मरण से।
जो विभाजित हो
चुकी है न जाने कितनी बार,
आज हैं जो नये, पुरानी कोशिकाओं के मरण से॥
हाँ, उस रोज की
तारीख में जाओ, ले जाओ
उस रोज का पूरा भूगोल और फिर स्मृति मन से।
केवल उस रोज पाओगे
रिश्तों की वही ताजगी,
सींचा नहीं है फिर कभी आपने अपनी छुअन से॥
(स्वरचित एवं मौलिक)
© सुरेन्द्र कुमार पटेल
ब्योहारी, जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश)[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली]
1 टिप्पणी:
सर आपने रिश्तों में मिठास ही घोल दिया,,, कितनी सुन्दरतम भावों से रिश्तों में प्राण फूंक दिया ,,, रिश्तों में श्रृंगारिक रूप का स्वतः उदघाटन हो रहा है ,,,, सच आपके भाव शक्ति को सलाम है ,,, ईश्वर आपके हृदय पुंज में ऐसे ही भाव प्रवणित शब्दों क़ी बारिश करे,,, हमें भी साथ हृदय साहित्य की दुनिया में ले चलिए ,,, हमारे हाथ कभी ना छोड़ दीजिएगा आपके स्नेहन में रजनीश
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