शुक्रवार, जून 05, 2020

प्रकृति और मानव :राम सहोदर


प्रकृति और मानव 
मनुष्य शताब्दियों से प्रकृति की गोद में आश्रय प्राप्त किया है। प्रकृति के बिना मानव न तो एक पग चल सकता है और न ही एकपल जीवित रह सकता है। मानव के फलने और फूलने का सम्पूर्ण श्रेय प्रकृति को ही है। यह पृथ्वी मनुष्य का आंगन है।असमान का आवरण ही छत है। सूर्य, चन्द्रमा दीपक है। और नदी झील तथा सागर मनुष्य के घड़े हैं। पौधे तथा वनस्पतियाॅ आहार के साधन हैं। 
प्रकृति मानव एवं मुनि महात्माओं के अध्यात्मिक चेतना के केन्द्र रहे हैं। प्रकृति के सौंदर्य से मोहित होकर कवियों ने अनेक काव्य कृतियाॅं रची हैं। वस्तुतः मानव और प्रकृति का अत्यन्त गहरा संबंध रहा है। प्रकृति की गोद ही मुख्य शिक्षा के केन्द्र रहे हैं। वेदों, पुराणों, उपनिषदों की रचना प्रकृति के बीच ही हुई हैं। मनुष्य प्रकृति के सहयोग से ही सुखी और सम्पन्न रह सका है। प्रकृति निष्पक्ष है वह किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करती है। प्रकृति से प्रेम ही मनुष्य को उन्नति की ओर ले जाता है।
वृक्ष फूल फल और लताओं युक्त रहकर यानी सर्व सम्पन्न रहकर भी झुके रहते हैं जिससे हमें शील और विनम्रता की सीख प्राप्त होती है। प्रकृति हर समय मानव को आदर्शवाद का पाठ पढ़ाती है। नदियाॅं हमारे खेतों की सिंचाई कर हमें पीने का पानी उपलब्ध कराती है। नदियों को जल पेड़-पौधों एवं वर्षा द्वारा ही प्राप्त होता है। और वर्षा भी पहाड़ों और वनों के द्वारा ही हो पाती है। इसका मतलब यह कि प्रकृति के सारे उपमान ग्रुप के रूप में काम करते हैं। वन नहीं होंगे तो बादलों को आकर्षित कौन करेगा। पहाड़ नहीं होंगे तो वर्षा हवाओं को कौन रोकेगा। और बादल बरषेंगे ही नही ंतो हमारे फसलों को नदियों को तालाब और कुओं को पानी कहां से मिलेगा। यानी प्राणियों और मनुष्यों को जीवित रहने के लिये प्रकृति का संतुलन आवश्यक है।
प्रकृति के द्वार सबके लिये समान रूप से खुले हैं। लेकिन जब कोई इसके साथ बेवजह छेड़छाड़ करता है, अनावश्यक रूप से नुकसान पहुंचाता है तब प्रकृति का भी कोप प्रकट होना स्वाभाविक है। कहा भी गया है- कर भला, तो हो भला। और तब प्रकृति का क्रोध भूकम्प, सूखा, बाढ़ तूफान के रूप में फूट पड़ता है। तब फिर अपराध करने वाला और अपराध न करने वाला सभी काल के गाल में समा जाते हैं। प्रकृति से हस्तक्षेप के कारण पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ा। और इसके दुष्परिणाम से वातावरण में विषैले गैस घुल गये। जिससे अनेक प्रकार की बीमारियों ने जन्म ले लिया। धरती में पानी की कमी हुई जिससे तापमान असामान्य हो गया। ग्लेशियर का पिघलना प्रारम्भ हो गया। हमारे भारतवर्ष में तीव्र गति से वनों को नष्ट किया जा रहा है। जनसंख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। गृह निर्माण, खेत निर्माण, बांध निर्माण तथा अन्य विभिन्न कार्यों के लिये लगातार वनों को रिक्त किया जा रहा है। अगर यही स्थिति रही तो कुछ ही दिनों में यह धरती वन विहीन हो जायेगा। और तब सोचिये मानव और अन्य जीव जन्तुओं की क्या दुर्गति होगी।अनेक जीव और पशुपक्षियां तो वर्तमान में ही विलुप्त हो चुके हैं। कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
मानव भी प्रकृति का हिस्सा है। और आदिकाल से ही मानव और प्रकृति का गहरा संबंध रहा है। हरे-भरे पेड़ पौधे मानव जीवन के अभिन्न अंग हैं। प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। क्षिति, जल, पावक समीर और आकाश इन पाॅंच तत्वों से ही शरीर का निर्माण होता है। सृष्टि ने इस पृथ्वी को नदी, पहाड़, वन रूपी आभूषणों से श्रंगारित कर मानव को प्रदान किया है ताकि वह हंसी-खुशी की जिन्दगी जी सके किन्तु मानव है कि प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को न समझकर अपनी जरूरतों की पिपासा की तृप्ति के लिये पेड़ों को काटने में तुला हुआ है। उसे यह भी नहीं पता कि वह प्रदूषण फैलाकर अपने ही पैर में कुल्हाड़ी चला रहा है। मानव स्वयं ही ’’आ बैल, मुझे मार’’ की कहावत को चरितार्थ कर रहा है। अगर मानव यानी हमने समझा नहीं और प्रकृति के साथ इसी गति से छेड़खानी चलती रही तो वह दिन दूर नहंी जब मानव आॅक्सीजन और पानी की कमी से विलमत होने की कगार में पहुंच जायेगा। और तब हमारी कोई भी तरकीब हमारे काम नहीं आयेगी।
इस सर्वनाश से बचने के लिये और पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिये प्रतिवर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत 1973 से हुई। जिसका मुख्य लक्ष्य है- पर्यावरण के महत्व का प्रचार-प्रसार कर लोगों में पर्यावरण के  प्रति जागरूकता पैदा करना, पर्यावरण को संरक्षित करने का उपाय सुझाना, तथा लोगों को इसके प्रति प्रोत्साहित करना। ताकि मानव की जीवनशैली को सुरक्षित, निर्मल और आनन्ददायी बनाया जा सके।
इसके लिये सभी को आगे आकर जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर समाज के हर वर्ग में इस आशय की जानकारी देनी होगी। पर्यावरण की उपयोगिता पर प्रकाश डालना होगा। उनमें प्रोत्साहन पैदा कर पर्यावरण के प्रति आकर्षण और लगाव जागृति करना होगा। ताकि लोगों में पर्यावरण के प्रति रुझाान पैदा हो जाय और प्रदूषण के प्रति भय और नफरत आ जाय। जिससे लोग स्पयं ही इस कार्य के लिये आगे आयें तथा पर्यावरण दिवस के लक्ष्यों को पूर्ण करने में सक्रिय सहभागी बनें।
जब लोगों में पर्यावरण के प्रति लगाव बढ़ जायेगा, वे उसके महत्व को समझने लगेंगे जब वे स्वयं पेड़ों को काटना बन्द कर देंगे और दूसरे लोगों को भी समझाइश देंगे। वे स्वयं ही पेड़ लगाने लगेंगे। और दूसरे लोगों को प्रेरित कर धरती को हराभरा बनाने में अमूल्य सहयोग प्रदान करेंगे। और तब हमारा पर्यावरण दिवस मनाने का लक्ष्य भी पूर्ण होगा।
॥वृक्ष देवो भवः॥
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