गुरुवार, जून 25, 2020

वर्तमान का चलचित्र: सुरेन्द्र कुमार पटेल


वर्तमान का चलचित्र



एक के बाद एक जब कई सुखद या दुःखद घटनाएं,
हमारे मन-मस्तिष्क से होकर तीव्रगति से गुजर जाएं।
जैसे चलचित्र तेजी से आंखों को छूकर निकल जाए,
हमने क्या देखा, आसान नहीं है वह पकड़ में आये।

हमें याद रहता है हमारा भी दुःख अगले दुख तक,
कोई दुख, दुख देता है हमें मात्र वहीं तक रुककर।
यही मनोवैज्ञानिक प्रयोग जनमन पर किया जाता है,
गतदुख निवारण हेतु गत से बड़ा दुःख दिया जाता है।

नितनवीन समाचारों ने तत्क्षणता का स्वाद चखाया है,
कल के छोटे दुख को आज के बड़े दुख ने मिटाया है।
पुरा स्मरण शक्ति को आज की दुःखद खबर हड़प रही है,
वर्त हो रहा अतीत, अतीत को झांकने की तड़प नहीं है।

आप स्वयं देश के गत कुछ दिनों के गंभीर संकटों को लें,
फिर एक-एक घटना की परतों को मस्तिष्क में खंगालें।
आपके मनोमस्तिष्क में वही घटनायें स्थान बनाती हैं,
जो घटनाएं आपके समाचार पत्र के कोनों में समाती हैं।

इस प्रक्रिया से देख लें मस्तिष्क की संचित स्मृति को,
यहाँ देखा जाता है मानव-मस्तिष्क की इसी विकृति को।
सड़कों का चीत्कार, निर्भया पर अत्याचार भूल जाता है,
आत्महत्या पर होता विमर्श, कोई फांसी पर झूल जाता है।

देश की समस्याओं पर अनगिनत सवाल उभरते हैं सदा,
वे सवाल किसी और सवाल के बाद बचते हैं यदा कदा।
उन लोगों ने इसीलिए मानव मस्तिष्क को अस्त्र बनाया है, 
दुर्बलताओं का ले लाभ सदा गोल-गोल उन्होंने घुमाया है।

उत्तरदायित्व पर अनुत्तरदायी उत्तर वे देते ही रहते हैं,
जब तक आप एक की पूंछ पकड़ें वे दूसरा फेंक देते हैं।
बेरोजगारी पर उभरे सवालों का उत्तर बढ़ी हुई मंहगाई है, 
मंहगाई का उत्तर जातीय हिंसा या फिर धार्मिक लड़ाई है।

और, शेषांश कार्य सोशलमीडिया पूरा कर ही देता है,
इच्छित-अनिच्छित पल-पल के समाचार रख देता है।
समग्र विश्लेषण, निष्कर्ष तक पहुंचना जटिल हो गया,
वर्तमान के चलचित्र को रोकना अब मुश्किल हो गया।

मस्तिष्क-स्मृति कोष में संवेदनाओं के फोल्डर रखे जाएं,
वर्तमान के चलचित्र को अतीत से जोड़कर परखे जाएं।
वर्तमान के भुलावे में अतीत के फोल्डर यदि मिटा देंगे,
मृत्यु का दुःख भूलना, एक नयी मृत्यु देकर सिखा देंगे।

                           (मौलिक एवं स्वरचित)



©® सुरेन्द्र कुमार पटेल
ब्यौहारी, जिला-शहडोल
(मध्यप्रदेश)
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