सृष्टि
विकासशील है
एक व्यक्ति अच्छी
कविता लिखता है,
भाषा विज्ञान का
पण्डित है,
एक व्यक्ति ने राजनीति
में कमाल हासिल किया है।
एक व्यक्ति अच्छा
संगीतज्ञ है,
एक व्यक्ति
चित्रकार है,
एक व्यक्ति
अभिनेता है,
सारांश कोई कुछ
है, कोई कुछ है,
सबमें विभिन्नता है।
सबका दिलो-दिमाग अलग-अलग है,
ऐसा होता रहा है, ऐसा हो रहा है ऐसा होता रहेगा।
सृष्टि में
तरह-तरह के फूल खिलते रहेंगे,
और सृष्टि
चलती रहेगी।
ये विभिन्न फूल
फूलकर, अपनी सार्थकता समाप्त
करते रहेंगे,
इन विभिन्नताओं
के बावजूद सबमें कुछ एकताएँ हैं।
सबको भूख लगती है,
सबको नींद आती है
सबको काम सताता
है,
सबको डर लगता है,
साम्यवाद ने मानव
समाज को आश्वासन दिया है,
लेकिन वह अधूरा
है।
जिसमें सबकी आवश्यकताएं
पूरी हो,
और सब स्वतंत्र रहें, वह तन्त्र कौन सा है?
हमें उसी तन्त्र की
प्रतीक्षा है।
क्या मानवता की
आशा कभी पूरी होगी?
या वह सदा अधूरी रहेगी?
सृष्टि विकासशील
है।
वह विकसित होती रहेगी
और एक दिन मानवता का सपना सच होगा।
-अनिल
पटेल
नगनौड़ी,
तहसील-जयसिंहनगर जिला-शहडोल
2 टिप्पणियां:
क्या गजब की लेखनी है
बहुत सुंदर, उम्दा रचना,
बेहतरीन,एक रूप यह भी अनिल जी का।
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