कवि का चिंतन
सोचता हूं,क्या गुफ्तगू करता होगा
बड़े इत्मीनान से
कोई कवि जब लिखता होगा
रुदन के बीज, हंसी की बात,
खीज से मन को भर लेता,
सहज ही बात पर,
आश्चर्य चकित हुआ होगा
व्यथा मन की, बात तन की
समेट कर जहां भर की बातें
जाने किस कशमकश में
रात को सोया होगा
इन्द्रधनुष सा मन उसका
रंगों का वो सौदागर
कितने रंगों में डुबोकर
कागज पर कलम रखता होगा।
किलकारी, खामोशी, सहर का शोर
क्रोध का गूंज भी, औरतों की खुसफुसाहट तक
संवेदनाएं अपने हृदय में, गहरी जगाया होगा।
मुक्कमल तो कुछ था ही नहीं
परवाह उसे कहां इस बात की थी
शहर दर शहर, कितने रास्तों का
सफर उसने किया होगा।
क्या पता कभी किया भी है प्रेम उसने ?
बखूबी लिखता है मगर
विरह का दर्द, श्रृंगार का रस
किसी प्रेयसी का हृदय भी रखता होगा
सोचता हूं,
क्या गुफ्तगू करता होगा
बड़े इत्मीनान से
कोई कवि जब लिखता होगा।
रचनाकार:
ⓒइंजी. प्रदीप
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