शनिवार, जून 13, 2020

माँ के बेटे हम:कुलदीप

(1)
अपने माँ  के  बेटे  हम!
माँ को ही दुख देते हम!
जिसके आँचल में खेला
आज नही है उसमें दम!

पल भर में कर  दिए पराये!
उम्र भर से थे जिनके साये!
वही टूटा मकान एक चूल्हा
वस ही उनके हिस्से में आये।

बनना था जब आंखों का तारा!
दिखा दिए है उसको अंधियारा!
सहकर भी कुछ नही कहती है
आखिर बेटा है वो मेरा बेचारा!

कोमल  ह्रदय है उसका  अपार!
करती है अपने  बेटों का उद्धार!
विद्धमान है ये जो संस्कार तुममे
है उस माँ का ही तुमपे उपकार!

कब शैलाब उठेगा हमारे जुनून में!
कब आग लगेगी  हमारे खून   में!
पाल पोस कर बड़ा किया जिसने
कब नजर आयेंगे उनके सुकून में।
(2)
धड़कनों से सांसों का राब्ता टूट रहा है।
अपनो का अपनो से वास्ता छूट रहा है।

रिश्ते अब कागज के पन्नों में सिमट रहे हैं।
दर्द आंखों से उतर अश्को में लिपट रहे हैं।

रूह ऊपर से जिस्म की चादर ओढ़ रही है।
वफ़ा अब झूठ फ़रेब से नाता जोड़ रही है।

अपनत्व का भाव अब सर पार हो रहा है।
आभासी दुनिया सच का संसार हो रहा है।

ये जिंदगी भी किस कगार पे आ टिकी है।
मानो जैसे किसी कतार पे आ....छिपी है।



कुलदीप
[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली

1 टिप्पणी:

Kiran Gautam ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना, हार्दिक बधाई whatsapp status

तनावमुक्त जीवन कैसे जियें?

तनावमुक्त जीवन कैसेजियें? तनावमुक्त जीवन आज हर किसी का सपना बनकर रह गया है. आज हर कोई अपने जीवन का ऐसा विकास चाहता है जिसमें उसे कम से कम ...