सोमवार, मई 04, 2020

जीवन का प्रलय प्रलाप:मनोज कुमार



* जीवन का प्रलय प्रलाप*

हे प्रलयंकार!
विपल्ल वेदना मैं क्या कहूं ?
विपदा तिमिर सर्वत्र विकीर्ण
प्रति पथ दृष्टिगोचर संकीर्ण,
स्वा चित् काया निर्वासन जीर्ण

इस हयात के जलजला में,
निज अंतस्थ धैर्य नहीं है स्थिरl
सहम नहीं हृदय विदारक पल में,
अश्रुपूर्ण अनवरत कपोलों से गिरll

यह अधर्म, अनीति का प्रतिफल,
प्रकृति का यह विक्रांत प्रतिकारl
जीवन करुण कंदन की कसक में,
मनुज करे अंतः करण से स्वीकारll

जीवन काल कवलित हो रहा है,
सकल जग खड़ा महि में स्तब्धl
बस अंतस्थ से एक चीख यही,
जगत में निज कर्मों का प्रारब्धll
महाप्रलय की विकराल पहर में,
सर्वत्र विकीर्ण आफत अंधियारा,
अब सकल धरा हो रहा है निर्जन,
यत्किंचित न दृष्टिगोचर सहारा ll

इस विकराल जग महाप्रलय से,
बहुल नारी कलाइयां सुनी हो गईl
इस हिय द्रवित प्रगल्भ विपदा से,
बहुल सुहागिनी अभागन हो गई ll

चारू चंचल चित् थम सी गई,
मानव क्या उर्वी का चिरकाल से कारा?
अब चेतन मन अवचेतन हो गई,
इस विपदा से ग्रसित  जग साराll

हे ! प्रकृति पुरुष
जीवन के इस भीषणतम कहर में,
अब इस जग का उद्धार करो,
मानवता की रक्षा के लिए,
सर्व विपदा का संहार करो ll

कब उदित होगा भोर का तारा,
कब निकले सूरज की लाली ?
कब इस जीवन में रंगत आए,
सर्वत्र जीवन में फैले खुशहाली?

हे  भगवन्! आप की अद्भुत लीला,
इस चाहूं भुवन में तन मन है गीलाl
प्रमुदित इंद्रधनुष कब उदित होगा?
हयात पीड़ा की लंबी श्रंखला कब होगा ढीला?

हे! अजर, अमर, अविनाशी,
कब जीवन में आए सुख की राशि?
सकल जग चिरकाल के तव दासी,
कब मिटे इस अवचेतन मन की उदासी?

हे,! महामानव इस जीवन प्रलय में,
धरा में अवतरित होकर विपदा का सर संधान करो l
मानव जीवन में प्राण फूँककर कर,
इस महाप्रलय का कुछ नूतन अनुसंधान करोll


काव्य रचना: मनोज कुमार चंद्रवंशी संकुल खाटी विकासखंड पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर (मध्य प्रदेश)

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