(1) सत्ता
तेरे और मेरे विचार।
अब नहीं मिलेंगे।
यह मैंने जान लिया।
तू राजनीति की बेटी।
मैं मजदूरों का बेटा।
तू छप्पन भोग सजाती।
मैं भूखा ही सो जाता।
तेरे पास है, महल अटारी।
मेरी टूटी झोपड़पट्टी।
मखमल, गद्दे, रेशम,
सारी।
कैसे होगी तुमसे यारी।
मैं खुली हवा में सांसे लेता।
मेरे घर की सूखी रोटी।
खाते गरीब के
बेटा-बेटी।
वैभव विलास के आगे।
तुझे नहीं कुछ
भाया।
इसलिए आज मजदूरों का शव
पटरी में आया।
अब भी पश्चाताप करो।
मजदूरों की टोली पता करो।
शहर गए थे सपने लेकर।
थम गए पांव...
छोड़ गये क्रंदन...
बिलख रहे होंगे नंदन...
(2) तेरा-मेरा सबका दुःख
नई नहीं पुरानी
है।
भारत की करुण
कहानी है।
पुरखे लुटे विदेशियों से।
नेता नव पीढ़ी
को लूट रहे।
मेहनत करने वाले
झोपड़ियों में।
बेमहलों का सुख
भोग रहे हैं।
सबसे बड़े
भिक्षुक हैं जग के।
मोटी भिक्षा
लेते हैं।
दुनिया से फिर
दृष्टि वे।
झोली अपनी भरते
हैं।
भाई को भाई का
दुश्मन बना।
शकुनी का काम
करते हैं।
मिले कभी जब
बीहण में।
तो फूहड़ बातें
करते हैं।
दिन में गांधी
बनकर।
सत्य अहिंसा
अपनाते हैं।
किंतु रात में
बन दुशासन।
द्रोपदी का
वस्त्र हरण करते हैं।
©कोमल चंद
कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप
सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें