** मैं गरीब हूँ **
मैं कितना भूख सहा गरीबी में,
एक दाने की खातिर।
तन चिथड़ा अभावों में,
किसी ने मेरी फिक्र नहीं की, लोग कितने हैं शातिर॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। आह! मैं कितना बदनसीब हूँ।
मैं कितना दुतकारा गया,
मैं अपमान का घूंट पी रहा हूँ।
बेबश है यह जिंदगी,
फिर भी मैं एक रोटी के लिए जी रहा हूँ॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। फिर भी आप लोगों के करीब हूँ।
लाचार है यह जिंदगी,
तन में कोई दम नहीं पैर में फटे बिवाई।
आँख से आंसू टपक रहा है,
मेरे जर्जर शरीर पर किसी को कसक नहीं आई॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। मै गरीबी का मरीज हूँ।
मैं गरीबी से मजबूर होकर,
कहाँ-कहाँ नहीं भटका।
हर गली हर शहर में,
सब के दरवाजे में मिला ताला लटका॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ।आह ! मैं कितना बदनसीब हूँ।
रात को चूल्हा चढ़ता है,
दिन भर भूखे रहता हूँ।
यह गरीबी के थपेड़ों से,
हरदम भूख की पीड़ा सहता हूँ॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। फिर भी आप लोगों के करीब हूँ।
परिवार के नवनिहाल व्याकुल है,
एक-एक अन्न के लिए तरसते हैं।
मेरी गरीबी की व्यथित वेदना पर,
अमीर महाशय तंज कसते हैं॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। आह! मै कितना बदनसीब हूँ।
आह! दरिद्रता के नर्क से,
मैं कब छुटकारा पाऊंगा?
गरीबी की मार से अब नहीं जी पाऊँगा॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। आह! मैं कितना बदनसीब हूँ।
रचनाकार
मनोज कुमार चंद्रवंशी (शिक्षक) ग्राम बेलगवाँ
पोस्ट उमनियाँ विकासखंड पुष्पराजगढ़
जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
मैं कितना भूख सहा गरीबी में,
एक दाने की खातिर।
तन चिथड़ा अभावों में,
किसी ने मेरी फिक्र नहीं की, लोग कितने हैं शातिर॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। आह! मैं कितना बदनसीब हूँ।
मैं कितना दुतकारा गया,
मैं अपमान का घूंट पी रहा हूँ।
बेबश है यह जिंदगी,
फिर भी मैं एक रोटी के लिए जी रहा हूँ॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। फिर भी आप लोगों के करीब हूँ।
लाचार है यह जिंदगी,
तन में कोई दम नहीं पैर में फटे बिवाई।
आँख से आंसू टपक रहा है,
मेरे जर्जर शरीर पर किसी को कसक नहीं आई॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। मै गरीबी का मरीज हूँ।
मैं गरीबी से मजबूर होकर,
कहाँ-कहाँ नहीं भटका।
हर गली हर शहर में,
सब के दरवाजे में मिला ताला लटका॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ।आह ! मैं कितना बदनसीब हूँ।
रात को चूल्हा चढ़ता है,
दिन भर भूखे रहता हूँ।
यह गरीबी के थपेड़ों से,
हरदम भूख की पीड़ा सहता हूँ॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। फिर भी आप लोगों के करीब हूँ।
परिवार के नवनिहाल व्याकुल है,
एक-एक अन्न के लिए तरसते हैं।
मेरी गरीबी की व्यथित वेदना पर,
अमीर महाशय तंज कसते हैं॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। आह! मै कितना बदनसीब हूँ।
आह! दरिद्रता के नर्क से,
मैं कब छुटकारा पाऊंगा?
गरीबी की मार से अब नहीं जी पाऊँगा॥
क्योंकि मैं गरीब हूँ। आह! मैं कितना बदनसीब हूँ।
रचनाकार
मनोज कुमार चंद्रवंशी (शिक्षक) ग्राम बेलगवाँ
पोस्ट उमनियाँ विकासखंड पुष्पराजगढ़
जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
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