रविवार, अप्रैल 12, 2020

मजदूर की दुर्दशा:रमेश प्रसाद पटेल


हाय! मजदूर की भारी  दुर्दशा,
धरती न अम्बर में घर बसा
तन, वस्त्र पसीने से भींगे जब होती भारी गर्मी,
काम नहीं छोड़ते, चाहे ठंडी में  हो जाती  सर्दी
आंधी आए, पानी बरसे चाहे टूट पड़े बिजली,
कामों में  लगे रहते जैसे थोड़े जल में मछली
हाय! मजदूर की भारी  दुर्दशा,
धरती न अम्बर में घर बसा

जब गिरे ईंट, पत्थर वह घायल हो जाता,
मालिक मजदूर की कभी न दवा करवाता
कामों में लगा मजदूर जब कभी मर जाता,
दफनाने को न देता, पैसा नाली में फेंक जाता
हाय! मजदूर की भारी  दुर्दशा,
धरती न अम्बर में घर बसा

मालिक बुलाने जाता बीमारी में मजदूर न आता,
डरवाते, धमकाते उन्हें जबरन ले जाता
दुःख दर्द को सहते कामों में लग जाता,
धन्य मजदूर अपनी पीड़ा को उनसे छिपाता
हाय! मजदूर की भारी  दुर्दशा,
धरती न अम्बर में घर बसा

गगन चुम्बियों सा महलों को तैयार किया,
कल-कारखानों को भी तुमने ही उद्धार किया
हीरे-जवाहरात को तुमने खोदकर निकाला,
समुद्र में घुसकर तुमने मोतियाँ निकाला
हाय! मजदूर की भारी  दुर्दशा,
धरती न अम्बर में घर बसा

इतना काम करने पर भी वह निर्धन ही बना रहा,
तन मानव का पाकर मजदूर ही कहता रहा
तन न्योछावर करके वह अमीर न बन सका,
सब कष्ट सहन करने में भी अमर न हो सका
हाय! मजदूर की भारी  दुर्दशा,
धरती न अम्बर में घर बसा
चनारमेश प्रसाद पटेल, माध्यमिक शिक्षक 
पुरैना, ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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