मंगलवार, मार्च 31, 2020

चलें गांव की ओर: अंजली सिंह

चलें गांव की ओर
 (वैश्विक महामारी कोरोना के विशेष संदर्भ में)
                 
      वर्तमान परिपेक्ष में हम बात करें तो आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रयोग शहरों की तरह गांव में भी होने लगा है। आज गांव का हर परिवार या यों कहें कि गांव में रहने वाला हर व्यक्ति सोशल मीडिया से जुड़ चुका है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। खासकर आज का युवा वर्ग इससे बिल्कुल अछूता नहीं है।
             वैश्विक महामारी कोरोना के प्रभाव एवं दुष्परिणाम की जानकारी आज जितना शहर में रहने वाले व्यक्ति को है उससे कम गांव के रहवासी को  है। इसे हम उसकी एक तरह से अनभिज्ञता या जानबूझकर "आ बैल मुझे मार" जैसी बात कह सकते हैं।
         आदरणीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के पश्चात 24 मार्च मंगलवार को सभी टीवी चैनलों के माध्यम से एक सप्ताह के अंदर दूसरी बार जनता को संबोधित करते हुए इस वैश्विक महामारी की ओर बड़ा संकेत किया गया था। प्रधानमंत्री ने  चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिवस से ही 21 दिन के लिए पूरे भारतवर्ष में लाकडाउन की घोषणा करते हुए कहा गया है कि एक तरह से यह जनता कर्फ्यू ही है। उनके द्वारा बताया गया कि देश आज वैश्विक महामारी कोरोना के फैलाव के मुहाने पर खड़ा है और इन 21 दिनों तक यदि देश की जनता अपने धैर्य का परिचय देती है तो  इससे हम पूर्णत: सुरक्षित बच निकलेंगे।
गांव के वास्तविक परिदृश्य का अवलोकन नहीं
      प्रधानमंत्री जी के इस घोषणा के पश्चात शहरों की तुलना में गांवों की स्थिति भिन्न देखने को मिल रही है।मूल रूप से यह वैश्विक महामारी कोरोना वायरस एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे को लगता है। स्मर्णीय है कि यह बीमारी गुणोत्तर विधि से मनुष्य को अपने चपेट में लेती है। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से सभी को तो नहीं लेकिन अधिकांश व्यक्ति उससे प्रभावित हो जाते हैं।
     यदि हम गांव की बात करें तो शासन-प्रशासन के निर्देशों के बाद भी 'सोशल डिस्टेंसिंग' एवं अपने घर के अंदर रहने की स्थिति व्यक्तियों में नहीं बन पा रही है। आज गांव में संचालित अधिकांश छोटे-छोटे दुकानों के सामने बेतरतीब भीड़ देखने को मिल जाती है। साथ ही घरों के बाहर चबूतरो पर व्यक्ति एक-दूसरे के पास- पास बैठकर बातें करते हुए मिल जाते हैं। न तो इन्हें वैश्विक महामारी कोरोना से बचने के लिए मास्क, सैनेटाइजर का उपयोग अथवा साबुन से हाथ धोने की आदत है और न ही शासन द्वारा सुझाए गए तरीकों को अमल में लाने की इच्छा-शक्ति।
सोशल आइसोलेशन का पालन नहीं
     अपने संदेश में प्रधानमंत्री के द्वारा सभी देशवासियों को सोशल आइसोलेशन की अपेक्षा करते हुए कहा गया था कि देश का प्रत्येक नागरिक अपने ही घर में रहे। घर के बाहर इधर-उधर रेल,बस, बाजार, कार्यालय, धार्मिक स्थल, स्कूल, कॉलेज सभी बंद कर दिए गए हैं। किंतु गांव के लोग बेवजह सड़कों पर घूमते हुए, बाजारों में आकर भीड़ लगा लेते हैं। इसके कारण गांव में भी इस महामारी के आने की आशंका बन जाती है।
       अभी हमारे प्रदेश में यह वैश्विक महामारी कोरोना नियंत्रण की स्थिति में है।     शासन और प्रशासन के द्वारा वर्तमान में जितना ध्यान इस वैश्विक महामारी से बचाव और रोकथाम के लिए शहरों में दिया जा रहा है उससे अधिक ध्यान गांव में देना होगा तभी हमें आशातीत परिणाम मिलेंगे।
साभार:राज एक्सप्रेस अनूपपुर 

     गांव में जिला प्रशासन, पुलिस, चिकित्सा विभाग, जनप्रतिनिधियों के द्वारा संदिग्ध या बाहर से आए लोगों का परीक्षण के साथ इसके फैलाव को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है।
     शासन स्तर से इस वैश्विक महामारी की रोकथाम के लिए महिला एवं बाल विकास के द्वारा गांव में मात्र एक सर्वेक्षण करवाया गया है। इनके द्वारा न तो लोगों को साफ सफाई मास्क, हाथ धुलाई की समझाइश दी गई और न ही भीड़ न बनाने एवं घर के अंदर ही रहने की बात कही गई है। गांव में दिन में एकाध बार पुलिस का भ्रमण हो गया तो अच्छी बात है बाकी सब ऊपर वाले के हाथ में है।
पंचायत प्रतिनिधियों एवं शासकीय कर्मियों का उत्तरदायित्व महत्वपूर्ण
     वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए गांव में पदस्थ शिक्षक संवर्ग, कृषि विस्तार अधिकारी, राजस्व आदि विभाग के अमले, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों को इस महामारी से बचाव के लिए शासन स्तर से तत्काल निर्देश देने की आवश्यकता है,जो जो घर-घर जाकर प्रत्येक व्यक्ति को इसके दुष्परिणाम एवं बचाव की जानकारी दें। साथ ही ग्राम पंचायतों के जनप्रतिनिधियों को भी उनके उत्तरदायित्व का स्मरण करवाते हुए इस पुनीत कार्य में भी उनकी सहभागिता सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि इस महामारी से बचने के लिए सावधानी ही सुरक्षा है।
किसानों की सबसे बड़ी मुसीबत
असामायिक अतिवृष्टि एवं ओलावृष्टि के प्रकोप से गांव में रहने वाले किसानों की दलहन की फसल पूर्णत: समाप्त हो गई है। रही सही कसर इस वैश्विक महामारी ने पूरी कर दी है। वर्तमान में वह अपना जीविकोपार्जन सब्जी एवं दूध उत्पादन के द्वारा कर रहे थे ।लाकडाउन के दौरान 3 घंटे की छूट में ही यह सब्जी उत्पादक बाजारों में जाकर औने-पौने दाम पर अपने सब्जी को बेचने के लिए मजबूर हैं। जिले के लोकप्रिय कलेक्टर महोदय के द्वारा एक अभिनव पहल के आधार पर सब्जी विक्रेताओं के लिए जिला स्थित उत्कृष्ट विद्यालय के मैदान में अपनी सब्जियों को बेचने के लिए आदेश दिया गया है जो इस वैश्विक महामारी की रोकथाम के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
 आलेख:अंजली सिंह 
 उच्च माध्यमिक शिक्षक
शा.उ. मा.विद्यालय भाद                 
        जिला अनूपपुर
(साभार:राज एक्सप्रेस के लिए श्री सीताराम पटेल)
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