आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियाॅं
नियमित व संयमित दिनचर्या, सुखी जीवन का आधार।
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।।
मन वश में और इच्छाओं को नियंत्रित करता,
लक्ष्य के प्रति जो सदा अपने को सचेत रखता।
लक्ष्य पाने की तुम चेष्टा करना, नहीं है सब बेकार
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।
बुद्धि विवेक से सत पथ में करते काम,
सदा उन्नति के पथ से मिलता है आराम।
उन्नति करते हुए तुम दूसरों का कर सको उपकार,
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।
सात्विक भोजन ही नियमित तुम खाओ,
ब्रम्हचर्य अपना, खुशियां अपने तन लाओ।
समझदारी रखते हुए और सदा बने रहें ईमानदार।
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।
व्यस्त रहें, मस्त रहें, स्वास्थ्य भी बनाए रखना,
बड़ों से सलाह ले सबको सम्मान देते रहना।
बहादुर बनो व हर कार्यों में तुम बने रहो जिम्मेदार,
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।
परिश्रमी अध्ययनशीलता व मधुरभाषी बने,
आध्यात्मिक शक्ति अपना सदा विनम्र बने।
जीवन मंगलमय बने और कर सके अपना उद्धार,
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।
संषर्षशील जीवन को है निखारता,
विपत्ति सम्पत्ति की राह बन जाता।
विपत्ति से न डरें, सत-पथ अपना दिखायें साकार,
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।
भाग्यवादी नहीं, सौभाग्य निर्माण करें,
दुख बटाएं और सुख सदा बांटा करें।
आशान्वित व प्रसन्न हो पुरुषार्थी बनने को हो तैयार,
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।
इन सूक्तियां को अपनाकर सदा पालन करेगा,
अपने अंबर शुभ संस्कारों का सृजन भरेगा।
सूक्तियां आदर्श मान अपनाकर हो जायें होशियार,
आत्मोन्नति की स्वर्णिम सूक्तियां करती हैं बेड़ा पार।
पुरैना, ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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2 टिप्पणियां:
अति सुंदर रचना
बहुत बहुत साधुवाद महोदय
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