शनिवार, अक्टूबर 19, 2019

देश आजाद हुआ:सुरेन्द्र कुमार पटेल की कविता


देश आजाद हुआ
देश आजाद हुआ,
देश में हुआ प्रभात।
तुम  चिरनिद्रा से जागो,
उठाओ अब अपना माथ।

अंगेजों से लड़ाई में,
तुम्हारा भी सम हाथ रहा,
पर ये तो बिचारो कि
सत्त्ता तक क्यों न साथ रहा?

वे गए चले यहां से,
सत्ता सौंप किसे?
मिलना था हक जिसको,
अभी तक नहीं मिला उसे।

सत्ता, सत्ता न हुई,
द्रोपती-सी नारी हुई।
कुछ दिन तुम भोगो,
अब हमारी बारी हुई।

सत्तर-सत्तर सुनते साल
अब ये पांच गए।
जो मिला नागरिक अधिकार हमें,
फिसल हमारे हाथ रहे।

उदरपूर्ति ही तो
आजादी का अर्थ न हो।
पूर्वजों का लोहा लेना,
देखना कहीं व्यर्थ न हो।

टुकड़ा रोटी का 
देता नहीं हक जीने का।
अलविदा करो अब तो,
घुट-घुटकर जीने का।

केवल नौकरी सरकारी
में मांग रहे क्यों हिस्सा।
अलग तुम्हारे दुकान हुए,
अस्पताल अलग, अलग है शिक्षा।

एक अस्पृश्य मिटा विधि से,
देखो, छुआछूत का नया पैमाना,
पैसे वालों का रशद अलग,
स्कूल अलग, अलग दवाईखाना।

अब तो साहित्य अलग, राजनीति 
प्रेरित मीडिया शिकार अलगौती का।
छन-छन कर खबरें आतीं,
जैसे निभा रहे धर्म बपौती का।

दोष कुछ अधिक नहीं उनका,
मद में हम मदमस्त पड़े हैं।
खुद सोचें और विचार करें,
अपनी अविद्या से हम कब लड़े हैं।

वे कर झूठे प्रचार,
लूट रहे कबसे बन भिक्षुक।
तुड़ा रहे हड्डी फिर भूखे क्यों हैं,
जानने के तुम रहे नहीं उत्सुक।

उठो, यह देश तुम्हारा भी,
स्नेह करो और अपना कहो।
बन सत्ता का भागीदार
मिटा दारिद्रय, अपना भाग्य गढ़ो।

पढ़ना होगा, मगर गहनता से
मन स्वयं डूबे और विचार करे।
जब-जब चोटिल हो स्वाभिमान
हृदय हो घायल और चीत्कार करे।

तोड़ बेड़ियाँ पैतृक
घेरे से बाहर तो आओ।
है यह पथ अचल
बन पथिक, नया पथ बनाओ।

हम रहे सदा घेरे में,
और वे सदा उन्मुक्त।
वे जन्मना उपयुक्त,
और हम पढ़े-लिखे अनुपयुक्त?

रीति के कीर्ति जो हम,
यूं ही गुनगुनाते रहे।
गोबरदेव तले नत शीश,
और जन्मनादेव को झुकाते रहे।

तो सच यही होगा कि 
बहुत सी मंगानी पड़ेगी सीढियां।
और स्वर्गभोग की इच्छा में
न जाने कुर्बान होंगी कितनी पीढियां।

प्रश्नानेक का हलेक है,
मनश्चिन्तन तीव्र, और क्षेत्र विस्तार हो।
काट बंध अंधपथ का बढ़ें,
प्रकाश वहाँ-वहाँ, जहाँ-जहाँ अंधकार हो।

यह नवयुग कलयुग अर्थयुग,
पूंजीवाद अपने पैर पसार रहा।
तुम छोड़ना नहीं अंश मानवता का 
सुशिक्ष स्वयं हो योग्यपथ आगे बढ़ा।

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6 टिप्‍पणियां:

Er. Pradeip ने कहा…

समसामयिक राष्ट्रीय चिंतन पर बेहतरीन कविता।

आपस की बात सुनें ने कहा…

बहुत-बहुत शुक्रिया प्रदीप जी-सुरेन्द्र।

वीरेन्द्र कुमार पटेल ने कहा…

वर्तमान
स्थिति, देश, काल, वातावरण, कि सजीव झाँकी का स्वरूप इस कविता में हमें देखने को मिलती है !देश में मीडिया का जिस प्रकार से उपयोग हुआ है निश्चित रूप से चिन्ता का विषय !सभी को अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा ! राजनीति में सभी को दिलचस्पी रखनी होगी !नेता का भाषण दिल से कम दिमाग़ से ज्यादा सुने !

आपस की बात सुनें ने कहा…

कविता को समर्थन देने के लिये आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया।

Bharat Kumar kol ने कहा…

Very nice sir

Surendra S.Patel ने कहा…

राष्ट्र हित के लिये विचारणीय कविता।

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