(अशोक त्रिपाठी "माधव" की बारिश पर कविता)
Ashok Tripathi "Madhav" ki Barish par Kavita)
आधार छंद-गीतिका
नहीं बरसना था तो बादल
क्यूँ निकले थे घर से।
कृषि कर्षक सब जीव जगत के
बूँद-बूँद को तरसे।।
जेठ मास में कीच मचाया,
आर्द्रा में नहिं बूँद गिराया।
उमस कड़ी गर्मी दम तोड़े
बरसो तो मन हरषे।।
घर के अन्न खेत में पहुँचे,
खाली हुए भँडारे।
अब तो रहम करो हे बादल,
मिटे गरीबी सर से।।
देर हुई सब नाश करो मत,
इतना मत तड़पाओ।
उबरे नहीं अभी कोविड से,
तुम उधेड़ते चरसे।।
बिन पानी के जग है सूना,
मुश्किल जीवन जीना।
पुनर्वसु ने बहुत रुलाया,
पुख्ख सुख्ख से बरसे।।
लाज रखो निज जलद नाम का,
माधव विनती करता।
टूट चुका मानव मानो तुम,
अब भीतर बाहर से।।
अशोक त्रिपाठी "माधव"
शहडोल मध्यप्रदेश
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