शीर्षक - प्रकृति (कविता)
प्रकृति के ये नजारे
कितने सुंदर कितने प्यारे ,
नौका मे करूँ विहार
कभी इस आर कभी उस पार,
नीले गगन तले
चले ठंडी -ठंडी पवन,
देख कर दृश्य यह
भाव विभोर हो रहा मन ।
नदियॉ रहती अपनी धुन में
आसमान नीला - नीला
खुबसूरत इन वादियों में
पक्षी उड़ते मस्तमौला
मन करता हैं मै भी
पक्षी बन उड़ जाऊँ
छू लूँ जाके गगन
हवा के साथ लहराऊँ ।
सुबह का सूरज उगता जैसे
नयी प्रेरणा लाये
उठो , जागो ,काम करो
आलस त्यागो यही सिखायें
इन बहारों को देख
खुशी मिल गयीं
लगता है जैसे
दिल की कली खिल गयी
कितनी सुंदर , कितनी प्यारी
लगती हैं धरती हमारी ,
प्रकृति का श्रृंगार कर सुन्दरता
हो जाती और भी न्यारी।
इसी प्रकृति के प्रेम मे
आओ कही खो जाएँ ,
करते रहे प्रयत्न हम अपनी
प्रकृति को खुशहाल बनाये ।
रचना:-
शोभा तिवारी "समीक्षा "
कोटाबाग ,
नैनीताल , उत्तराखंड
1 टिप्पणी:
वाह, प्रकृति प्रेम पर खूबसूरत पंक्तियां
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