नील गगन में उन्मुक्त,
विचरण तुच्छ कीट पतंगा।
पावस ऋतु में सुरचाप,
निज छटा बिखेरता बहुरंगा॥
नीलांबर परिधान विस्तृत,
अखिल ब्रह्मांड के चहुँ ओर।
नीलगगन अति रमणीय,
नहीं दृष्टिपात नभ की छोर॥
शशि उदित नील गगन में,
चारू सितारे झिलमिला उठे।
मोतियों से परिपूर्ण नीलांबर,
धवल सुप्त नक्षत्र फिर से उठे॥
नील पट आच्छादित गगन में,
मानो नवविवाहिता सादृश्य।
व्योम, नक्षत्र नभ के श्रृंगार,
अति सुन्दर नभ छवि दृश्य॥
नभ में उदित तारागण,
रवि रश्मि से हो जाते अदृश्य।
रजनी के शुभ आगमन पर,
तारों का झिलमिल दृश्य॥
नभ में उदित भोर का तारा,
चित् समाविष्ट आभामंडल में।
दृष्टिगोचर सप्तर्षी तारकगण,
अटल ध्रुव तारा नभ मंडल में॥
नीलगगन प्रकृति का प्रताप,
उद्घोष ऋषियों के वाणी से।
सकल जग कंपित हो उठता है,
अकस्मात आकाशवाणी से॥
नील गगन की सुंदरता न्यारी,
विश्व व्यापक जग चिर स्थायी।
अटल, अद्वितीय, अनुपम,
नभ में अंतरिक्ष वैभव समायी॥
स्वरचित
मनोज कुमार चंद्रवंशी
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर (म0प्र0)
रचना दिनाँक - २५|०६|२०२०
विचरण तुच्छ कीट पतंगा।
पावस ऋतु में सुरचाप,
निज छटा बिखेरता बहुरंगा॥
नीलांबर परिधान विस्तृत,
अखिल ब्रह्मांड के चहुँ ओर।
नीलगगन अति रमणीय,
नहीं दृष्टिपात नभ की छोर॥
शशि उदित नील गगन में,
चारू सितारे झिलमिला उठे।
मोतियों से परिपूर्ण नीलांबर,
धवल सुप्त नक्षत्र फिर से उठे॥
नील पट आच्छादित गगन में,
मानो नवविवाहिता सादृश्य।
व्योम, नक्षत्र नभ के श्रृंगार,
अति सुन्दर नभ छवि दृश्य॥
नभ में उदित तारागण,
रवि रश्मि से हो जाते अदृश्य।
रजनी के शुभ आगमन पर,
तारों का झिलमिल दृश्य॥
नभ में उदित भोर का तारा,
चित् समाविष्ट आभामंडल में।
दृष्टिगोचर सप्तर्षी तारकगण,
अटल ध्रुव तारा नभ मंडल में॥
नीलगगन प्रकृति का प्रताप,
उद्घोष ऋषियों के वाणी से।
सकल जग कंपित हो उठता है,
अकस्मात आकाशवाणी से॥
नील गगन की सुंदरता न्यारी,
विश्व व्यापक जग चिर स्थायी।
अटल, अद्वितीय, अनुपम,
नभ में अंतरिक्ष वैभव समायी॥
स्वरचित
मनोज कुमार चंद्रवंशी
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर (म0प्र0)
रचना दिनाँक - २५|०६|२०२०
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