कवि का कवि से
-रजनीश (हिन्दी प्रतिष्ठा)
-रजनीश (हिन्दी प्रतिष्ठा)
कवि कलाओं का जादू बिखेरता है
सम्पूर्ण सृष्टि का चित्र उकेरता है
सभी इसी में बंधे
कवि, कवि का स्वागत करता है....
कवियों का जैसे अलग साम्राज्य है
अलग ही संसार है
एक कवि दूसरे कवि का
मन रखता है....
कवियों की कलम से ही
संसार की उड़ान है
इस उड़ान में वह न जाने
किन-किन चीजों को भरता है....
एक कवि दूसरे कवि को
वन्दनवार भेंट करता है
तो कहीं कलाशक्ति से उसके अंतस्तल तक
पहुँचने का हरसंभव प्रयास करता है....
कवियों का अलग प्रेम ही होता है
किताबों के साथ जीना
भावों के साथ खेलना
प्रकृति संग घूमना
कवियों का आदत-सा हो जाता है....
कवियों का समूह
शीतल,मंद,सुगंध तानें
छोड़ने में माहिर होता है
सभी कवि जैसे एक तार में बंधे हों
जैसे साथ गीत गाते हों
और सुर पिरोते हों....
एक कवि दूसरे कवि के हृदय में उतरता है
जवाब में शब्द भरे मोती के थाल से
सुगन्धित फूलों का टीका अवश्य लगाता है
एक कवि जैसे दूसरे कवि को हृदय ही सौंप देता है....
एक कवि दूसरे कवि का जैसे भाई है
प्रदर्शक है, प्रमीत है
साथ ही संगीत है, सुर है
समाज का मूल है
प्रसाद है, रत्न है
और है विशेष....
न जाने कहाँ-कहाँ से भावनाएँ गढ़ता है
सुन्दर शब्दों में मढ़ता है
चिंतन में डूबे हृदय से
भावनाओं के चित्र उकेरता है....
एक कवि दूसरे कवि को सलाम करता है
प्रणाम करता है
हृदय में उतारता है
जैसे “एक बंध” समर्पित करता है....
कवि का कवि से “स्नेह-बंध” चलता है
कवियों का एक परिवार है
जिसमें सभी अपनी-अपनी भावों को
प्रकृति के लिए समर्पित करते हैं, अपने को तरासते हैं
और कला का संचरण कर
फूल और काँटों जैसे भावों का उत्पादन करते हैं
ऐसे होते हैं कवि
और ऐसी होती है उनकी सोच....
एक कवि दूसरे कवि को
भली-भांति भाप लेता है
कवि ही संसार को संगीत देता है
एक से ग्यारह
और ग्यारह से एक सौ ग्यारह
इस तरह अनंत तक
कवियों की सीमा होती है....
इनकी भी एक टोली होती है
इनका भी एक त्योहार होता है
सब एक-दूसरे से जुड़े
जीवन-गान समर्पित करने में, माहिर होते हैं....
एक कवि दूसरे कवि को
रात को सलाम
दिन को प्रणाम
करने में जुटा रहता है
कल और कला का हाल पूँछकर
फिर अपने को व्यस्त और स्वतंत्र कर लेता है
कवियों का समूह
शीतल,मंद,सुगंध तानें
छोड़ने में माहिर होता है
सभी कवि जैसे एक तार में बंधे हों
जैसे साथ गीत गाते हों
और सुर पिरोते हों....
एक कवि दूसरे कवि के हृदय में उतरता है
जवाब में शब्द भरे मोती के थाल से
सुगन्धित फूलों का टीका अवश्य लगाता है
एक कवि जैसे दूसरे कवि को हृदय ही सौंप देता है....
एक कवि दूसरे कवि का जैसे भाई है
प्रदर्शक है, प्रमीत है
साथ ही संगीत है, सुर है
समाज का मूल है
प्रसाद है, रत्न है
और है विशेष....
न जाने कहाँ-कहाँ से भावनाएँ गढ़ता है
सुन्दर शब्दों में मढ़ता है
चिंतन में डूबे हृदय से
भावनाओं के चित्र उकेरता है....
एक कवि दूसरे कवि को सलाम करता है
प्रणाम करता है
हृदय में उतारता है
जैसे “एक बंध” समर्पित करता है....
कवि का कवि से “स्नेह-बंध” चलता है
कवियों का एक परिवार है
जिसमें सभी अपनी-अपनी भावों को
प्रकृति के लिए समर्पित करते हैं, अपने को तरासते हैं
और कला का संचरण कर
फूल और काँटों जैसे भावों का उत्पादन करते हैं
ऐसे होते हैं कवि
और ऐसी होती है उनकी सोच....
एक कवि दूसरे कवि को
भली-भांति भाप लेता है
कवि ही संसार को संगीत देता है
एक से ग्यारह
और ग्यारह से एक सौ ग्यारह
इस तरह अनंत तक
कवियों की सीमा होती है....
इनकी भी एक टोली होती है
इनका भी एक त्योहार होता है
सब एक-दूसरे से जुड़े
जीवन-गान समर्पित करने में, माहिर होते हैं....
एक कवि दूसरे कवि को
रात को सलाम
दिन को प्रणाम
करने में जुटा रहता है
कल और कला का हाल पूँछकर
फिर अपने को व्यस्त और स्वतंत्र कर लेता है
बस यही सतत चलता रहता है....
[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली]
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1 टिप्पणी:
अच्छी कोशिश
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