गाँव में एक गरीब परिवार का बालक था
जिसे किसी भी समाज के लोग पसंद नहीं करते थे पर अपने माता -पिता के लिए वह लाडला प्यारा बेटा था। शांत स्वभाव होने के कारण माता-पिता ने
उसका नाम ऋषि रख दिया था।
ऋषि अपने नाम के
अनुसार सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान देता था, खेल में उसकी रूचि नहीं थी जिसके कारण
साथी लोग उसकी उपेक्षा करते थे। कम
बोलता था तो गाँव के लोग उसे बेवकूफ समझते थे। हर कोई उससे नफरत करता था।
ऋषि बढ़ता गया और गाँव के विद्यालय से
हायर सेकंडरी उत्तीर्ण होकर उच्च शिक्षा के लिए पास के विश्व विद्यालय में प्रवेश
लेकर अध्ययन करने लगा। फिर भी गाँव वालों की नजर में वह गँवार ही था। माता-पिता के आशीर्वाद से वह एम्.एससी. कर लिया। साथ
ही नेट पास कर लिया। समय बदलता गया, माता-पिता
के मेहनत का रंग दिखने लगा। फिर भी उसे कोई बेटा, भाई कहकर नहीं बोलता था। यहाँ यह कहावत
चरितार्थ होता है "बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद" जहां शिक्षा का अभाव
हो वह गाँव सिर्फ धन को ही महत्व देता है। ऋषि के पास तो योग्यता थी कि वह शासन के
उच्च पदों में जाए।
सौभाग्य से शासन ने सहायक प्राध्यापक का
पद निकाला और ऋषि का चयन हो गया। माता-पिता में अपार खुशियां आयी। ऋषि की तपस्या
पूर्ण हुई। होली में ऋषि गाँव आया जो
साथी उससे बोलते नहीं थे वे लोग यार-दोस्त कहकर बात करने लगे। जो लोग देखते तक
नहीं थे वे बेटा कहकर बोलने लगे। समाज के सभी लोग ऋषि से आत्मीय रिश्ते से सम्बोधन
करने लगे। शिक्षा; समाज
में बदलाव लाती है, वैचारिक
क्रान्ति लाती है ,
बेरिश्तों को रिश्तों में पिरोती है, समाज में खुशियां लाती है।
आज
पूरे गाँव के लोगों ने ऋषि के साथ आत्मीय रिश्ता जोड़ लिया। उन
सभी के सोच-विचार में बदलाव आ गया, रिश्ते की असीम धारा बहने लगी। शिक्षा
से ऋषि के रिश्तों में बदलाव आया।
रचनाकार -डी.ए.प्रकाश खांडे
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़,जिला -अनूपपुर मध्यप्रदेश
1 टिप्पणी:
आपने लघु लेख में यथार्थ का चित्रण किया है अनंत बधाइयां।
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