मेरे मनुज
रिश्वत
अनुज मेरे तुम
शील मनुज हो,
सागर की लहरों से सीखो।
कितनी लहरें आयीं बिखरी
उनसे भी कुछ लेना सीखो।
विचार वेग की व्यथा;व्याधि है,
लगकर आहत करती है।
तन की दारुण व्यथा सिसकती,
ना जीती है न मरती है।
ज़िंदा लौट चले अब मरकर,
विष-द्वेष की कलश फोड़कर।
मन में आश-विश्वास सजाकर,
गमन करें अब बैर तोड़कर।
उपदेश नहीं स्नेह समझना,
वार नहीं सत्कार समझना।
जीवन पथ पर अगणित नौका,
उन सबका पतवार समझना।
जीवन पथ पर चलते- चलते,
अंतर्द्वंद की निमिष मिटाना।
कलुष-भेद न हो द्वेष भाव,
अंतर्मन में प्रेम-दीप जलाना।
जागृत करना संकल्प शक्ति को,
प्रखर मेधा को सफल बनाना।
हर्ष-उत्कर्ष करना निश्चिय ही,
लक्ष्य-ध्येय को सबल बनाना।|
रिश्वत मानव को गुनहगार बना देती है।
उसकी भावनाओं को बीमार बना देती है।
चढ़ती है परत जब इस लाचारी की,
रिश्वत इंसान को गद्दार बना देती है॥
हर लोग घूंस को अब छुपाने लगे हैं।
पाकर कुछ लोग तो मुस्कुराने लगे हैं।
जबसे पड़ी है लोकायुक्त की मार ,
अधिकारी भी घूंस से चुरमुराने लगे हैं॥
लज्जा-पुण्य विहीन, सिफारिश को सिखाता हूँ।
मुझसे जो खाना चाहे, दुनिया को खिलाता हूँ।
बेरिश्तो से रिश्ता जोड़कर; बनता हूँ हैवान,
लेकिन मैं इंसान के सिर्फ, ईमान को खाता हूँ॥
मरा सड़ा लोभ बिंदु, हर जगह में भरमार हूँ।
स्वेच्छाचारी तुच्छों को, दिया गया उपहार हूँ।
रचनाकार:
- आपसे अनुरोध है कि कोरोना से बचने के सभी आवश्यक उपाय किये जाएँ
- बहुत आवश्यक होने पर ही घर से बाहर जाएँ, मास्क का उपयोग करें और शारीरिक दूरी बनाये रखें
- कम से कम 20 सेकंड तक साबुन से अच्छी तरह अपने हाथों को धोएं। ऐसा कई बार करेआपकी
- रचनाएँ हमें हमारे ईमेल पता akbs980@gmail.com पर अथवा व्हाट्सप नंबर 8982161035 पर भेजें। कृपया अपने आसपास के लोगों को तथा विद्यार्थियों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करने का कष्ट करें।
2 टिप्पणियां:
हमारे देश की वर्तमान परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार अनेक कारणों में से एक 'रिश्वतखोरी' भी है। यह विडंबना भी है कि समाज सामूहिक रूप से इसे एक बुराई के रूप में देखता है जबकि व्यक्तिगत रूप से एक अवसर के रूप में। जब व्यक्ति स्वतः सजग न हो तो उसे कानून की बंदिशों में बांधकर ठीक किया जाता है। आपकी कविता समाज की इसी विद्रूपता का चित्रण करती है। बहुत-बहुत बधाई, बहुत शुभकामनाएं।
बहुत अच्छी सर
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