करमा गीत
चला चली स्कूल शिक्षा
पावै का रे!
शिक्षा पावै का आर! शिक्षा पावै का रे।
चला चली स्कूल शिक्षा पावै का रे॥
बिना पढ़े कोऊ सुखी न होई, न चलिहैं जिदगानी
हाय- हाय न चलिहैं जिंदगानी ।
लडका-लडकी भेद न लावा, रहै न कोऊ अज्ञानी।
शिक्षा पावै का रे, चला चली स्कूल….
शिक्षा है अधिकार हमारो, कोई वंचित न रहना-2
इज्जत से यदि जीना चाहो, शिक्षित बनकर रहना ।
शिक्षा पावै का रे, चला चली स्कूल….
खेल-खेल में होय पढाई, डरने की नहिं बात-2
हाय-हाय डरने की नहिं बात ।
पुस्तक भी निःशुल्क मिळत है, छात्रवृत्ति मिल जात ।
शिक्षा पावै का रे, चला चली स्कूल….
खरचा-परचा कुछू न लागै; सुविधा दे सरकार ।
खाना-कपड़ा भी नित देता, छात्रवृत्ति भरमार ।
शिक्षा पावै का रे, चला चली स्कूल….
अज्ञान मिटा सम्मान बढ़ाये; बनती अपनी बात-2
हाय-हाय बनती अपनी बात ।
अगर पढ़ाई अच्छी कर लो, लेपटॉप मिल जात ।
शिक्षा पावै का रे, चला चली स्कूल….
या कलजुग मा गुजर न होई; अनपढ़ के सुन भाई।
हाय-हाय अनपढ़ के सुन भाई ।
सुखी अउर सम्पन्न रहैं का; शिक्षित हो बहुराई।
शिक्षा पावै का रे, चला चली स्कूल….
एतनेउ सुविधा मा न पढ़िहा; तौ पाछे पछितइहा-2
हाय-हाय तौ पाछे पछितइहा ।
कहै सहोदर सुखी न रइहा; या अवसर न पइहा ।
शिक्षा पावै का रे, चला चली स्कूल….
रचनाकार:
- आपसे अनुरोध है कि कोरोना से बचने के सभी आवश्यक उपाय किये जाएँ।
- बहुत आवश्यक होने पर ही घर से बाहर जाएँ, मास्क का उपयोग करें और शारीरिक दूरी बनाये रखें।
- कम से कम 20 सेकंड तक साबुन से अच्छी तरह अपने हाथों को धोएं। ऐसा कई बार करें।
- आपकी रचनाएँ हमें हमारे ईमेल पता akbs980@gmail.com पर अथवा व्हाट्सप नंबर 8982161035 पर भेजें। कृपया अपने आसपास के लोगों को तथा विद्यार्थियों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करने का कष्ट करें।
5 टिप्पणियां:
गांव की बोली की बडी मिठास है।😊
हार्दिक शुभकामनाएं।
Bahut hi Sandar
very nice Sir.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति सर
जीवन का असली मिठास लोक जीवन और लोक संस्कृति में ही है। ऐसा कभी नहीं था कि आम जन भूख, गरीबी बीमारी से कभी लड़ा नहीं। ऐसा कभी नहीं रहा कि लोक जीवन में सदैव पूर्णिमा ही रही, अमावस्या की रात हुई न हो।लेकिन दुख और संकट के समय को क्षीण करने उसे तनु करने का उपाय हमारी लोक संस्कृति में सदैव से रहा है। और बेहतर करने की प्रेरणा के गीत भी हमारे आसपास ही बिखरे थे। खेतों में काम करती महिलाये जब लोकगीतों की धुन बिखेरतीं थी तो काम के थकान का नामों निशान मिट जाता था। यंत्रों के आगमन ने हमें कुछ अच्छा सुनने और बोलने के लिए भी पराश्रयी बना दिया है। आपकी यह कोशिश लोक संस्कृति की निधि के रूप में संचित रहेगी और सदा स्मरण की जाएगी। आपके इस सफल प्रयत्न को बहुत-बहुत नमन। हार्दिक धन्यवाद।
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