शुक्रवार, मई 22, 2020

हे! पथिक (कविता): मनोज कुमार चंद्रवंशी

हे! पथिक  (कविता)

   हे! पथिक जीवन पथ के राही हो,
        सतत  पथ    में    चलना  है।
        जिंदगी   के   इस   सफर  में,
        राह   से  नहीं   फिसलना  है॥

       अगम्य मार्ग या संकीर्ण मार्ग हो,
       या अकथ,  अचल,  कंटीले  हो।
       निमिष    मात्र    विश्राम   नहीं,
       या   सर्वत्र   विकीर्ण  शूलें  हो॥

       बटोही    का     स्वधर्म    यही,
       किंचित  पथ   से   न   विचले।
       यदि    पहुंचना   है    शीर्ष  में,
       लक्ष्य  मार्ग   में अविरल  चले॥

       चाहे   बिजलियां   कौंधती   हो,
       या     तीव्र      चले       बयार।
       या   मेघ    की     गर्जना    हो,
       इस  जीवन  में  करो  स्वीकार॥

       लक्ष्य  प्राप्ति  का  साधक  बन,
       अब    अनवरत    आगे    बढ़। 
       उमंग    तरंग  आत्मसात   कर,
       अब   कुछ    नव   नूतन   गढ़॥

       पथ   प्रवाह  की  इस  गति  में,
       किंचित न तन में आराम कहीं।
       मनोबल   गिरि श्रृंग  सम  कर,
      अब   मुसाफिर    गम्य    वहीं॥

      मानस   पटल  को  प्रेरित  कर,
      धरती  आसमाँ   एकाकार कर।
      हर   बुलंदियों  को  स्पर्श   कर,
      यही  है   जीवन  का   उत्कर्ष॥
            
      गेह  पिंजड़ा से  बहिर्गमन कर,
      उर में नव जुनून उत्सर्जित कर।
      ह्रदय  में  नव  जोश  भर  कर,
     कंटकमयपथअवरोध दफन कर॥

      इस  जीवन   का  पथगामी  बन,
      तनिक  कर्मफल का आतुर नहीं।
      पथ   में  बढ़ना   स्वधर्म  है  तेरा,
     आराम में लत तो  कामयाब नहीं॥

      ध्येय का  मंजिल बहुत दूर नहीं,
      अब निश्चित हीअरुणोदय होगा।
      निज खुलेंगे  मुकद्दर  के कपाट,
      अब निश्चित ही भाग्योदय होगा॥
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            स्वरचित एवं मौलिक
    मनोज कुमार चंद्रवंशी विकासखंड
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश

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