गुरुवार, अप्रैल 23, 2020

शिक्षा और समाज:मनोज कुमार


*शिक्षा और समाज*
प्रस्तावना :- आज दिन प्रतिदिन समाज पथभ्रष्ट होते जा रहा है।  साथ ही समाज विकृत रूप धारण करते जा रहा है। इसका मुख्य कारण है समाज में शिक्षा का अभाव जब तक समाज में ज्ञान का पुंज विकीर्ण नहीं होगा तब तक समाज सभ्य एवं सुसंस्कृत नहीं बन सकता है यदि सही मायने में देखा जाए तो शिक्षा के बिना समाज के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

शिक्षा और समाज का संबंध

समाज मात्र व्यक्तियों का सामुदायिक संगठन है यह कहना  न्यायोचित नहीं होगा। समाज सही अर्थ धारण तब कर सकता है, जब समाज में अच्छे संस्कार हो, भ्रातत्व भाव हो तथा वैचारिक समता एवं नैतिकता होइन सभी मानवीय मूल्यों का समाज में समाविष्ट ज्ञान रूपी प्रकाश के माध्यम से किया जा सकता है। समाज में शिक्षा का केवल सैद्धांतिक स्वरूप को विकीर्ण करना न्यायोचित नहीं होगा अपितु शिक्षा का व्यवहारिक रूप समाज में प्रसार करना उचित होगा। शिक्षा से मात्र व्यक्तित्व का विकास नहीं होता है अपितु जीवन का सर्वांगीण विकास यथा आध्यात्मिकनैतिक, शारीरिक एवं बौद्धिक विकास होता है और यह सभी विकास मनुष्य समाज में रहकर ही कर सकता है क्योंकि मानव को समाज की आवश्यकता आदिकाल से रही है। चाहे कबीलों का समुदाय हो या घुमक्कड़ जनजातियों का समुदाय हो किंतु उन समाजों का विकास नगण्य था क्योंकि समाज में अशिक्षा का वर्चस्व था। उस समय शिक्षा प्राप्त करने के लिए ज्ञान सरोवर के केंद्र सीमित थे। जहां पर कुलीन वर्गों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार होता था। किंतु जब धीरे धीरे शिक्षा का विकास होना शुरू हुआ और समाज में उसका प्रभाव पड़ने लगा तब मानव के अंदर विवेक की जागृति प्रारंभ हुई। आज शिक्षा का विकास अपने पायदान में भले ही चरम उत्कर्ष में है, किंतु समाज  अपने सौंदर्य को पाने में आज भी कोसों दूर है। शिक्षा समाज के लिए तब मील का पत्थर साबित होगी जब सामाजिक कुरीतियां, व्यभिचार एवं कुप्रथाओं का उन्मूलन होगा। शिक्षा से ही समाज को ज्ञान की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है।

शिक्षा का समाज पर प्रभाव

शिक्षा से समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह बात यदि सत्य है तो समाज द्वारा भी शिक्षा में परिवर्तन किया गया है। शिक्षा समाज को एक निश्चित आकार प्रदान करती हैतथा समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करती है, साथ ही शिक्षा समाज को आर्थिक समाजिक एवं संस्कृतिक विकास की यात्रा में भी अपनी भूमिका निर्वहन किया है, तथा समाज को एक समुन्नत समाज की पंक्ति में लाकर खड़ा किया है।

शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन

यदि यह बात सत्य है कि समाज द्वारा शिक्षा में परिवर्तन होता है। तो यह भी सत्य है कि शिक्षा द्वारा भी समाज में परिवर्तन होता है शिक्षा द्वारा व्यक्ति की रहन- सहन बोली भाषा में परिवर्तन आता है साथ ही सामाजिक मान्यताओं जैसे रीति रिवाज ,परंपराए एवं प्रथाओं का भी ज्ञान व्यक्ति को होता है। अतः हम कह सकते हैं की शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाना एक महत्वपूर्ण कार्य है।
अतः हम निःसंदेह कह सकते हैं की शिक्षा और समाज एक दूसरे के पूरक हैं। एक की दूसरे के बिना कोरी कल्पना करना मात्र है।

निष्कर्ष:- उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि शिक्षा समाज के लिए नितांत आवश्यक है। शिक्षा के द्वारा ही समाज में आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक आधार को प्राप्त किया जा सकता है। शिक्षा के द्वारा समाज में नित नए नवाचार का समावेश किया जा सकता है।

शिक्षा के बिना नहीं हो सकता, समाज का चौमुखी विकास।
समाज स्तब्ध बैठा है ,लगाकर नूतन शिक्षा की आस॥

 (आलेख में व्यक्त विचार लेखक का स्वयं का है)

आलेख: मनोज कुमार चंद्रवंशी  संकुल खाटी पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश

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