शनिवार, अप्रैल 25, 2020

असत्य के त्याग से सारे अवगुण दूर हो जाते हैं: राम सहोदर


नारायणदास नाम का एक व्यक्ति था जो अनेक अवगुणों में फंसा रहता था। चोरी करना उसका पेशा था। वह हमेशा जुआ खेलता तथा झूठ बोलने में भी प्रवीण था। वह आलसी भी था, घर का काम कभी नहीं करता था। कभी-कभी शराब पीने का भी शौक रखता था। इस प्रकार नारायणदास अवगुणों का नायक था। प्रतिदिन रात्रि में कहीं न कहीं चोरी करता था क्योंकि इसी से उसकी जीविका चलती थी।

एक दिन मार्ग में जाता हुआ वह एक साधु से टकराया। साधु बहुत ही ज्ञानवान थे। दोनों ही एक वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगे और दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया।

नारायणदास ने साधु को प्रणाम किया और पूछा- संत जी आप कहां जा रहे हैं? संत बोले- बेटा, 'रमता जोगी, बहता पानी' का कोई ठिकाना नहीं होता। जहां पर कोई रोक ले, वहीं रुक जाता हूँ। रुककर सत्संग हुआ, ज्ञान की चर्चाएं हुईं और फिर आगे चला जाता हूँ। नारायणदास कहने लगा- संत जी, कृपा कर मुझे भी ज्ञान की कुछ बातें बताने का कष्ट करें। साधु बोले- बेटा चोरी करना, जुुआ खेलना, झूठ बोलना इंसान के शत्रु हैं। इसलिए इनसे हमेशा दूर रहना चाहिए। नारायणदास बोला -संत जी, चोरी करना और जुआ खेलना यह दोनों तो मेरी जीविका के साधन हैं इसलिए इन्हें तो छोड़ नहीं सकता हूँ। आपकी इतनी बात मैं मानता हूं कि आज से मैं झूठ नहीं बोलूंगा। नारायण दास की बात सुनकर साधु अति प्रसन्न हुए और हँसकर बोले-बेटा मैं तुम पर प्रसन्न हुआ। कम से कम तुमने एक बुराई छोड़ने का तो निश्चय किया। जाओ, भगवान तुम्हारा भला करे।

इसके बाद साधु अपने गंतव्य की ओर चले गए और नारायण दास मध्यरात्रि में राजा के महल में चोरी करने के लिए पीछे की दीवार को लाँघकर छत पर जा पहुँचा। वहाँ नींद न आने के कारण राजा पहले से ही रात्रि पोशाक में टहल रहा था।

नारायणदास का राजा से सामना होते ही राजा ने पूछा- तुम कौन हो? इतनी रात गए यहाँ आए हो? संत को दिए वचनों को नारायण दास ने ध्यान किया कि मुझे झूठ नहीं बोलना है। उसने उत्तर दिया कि मैं चोर हूँ। चोरी करने के इरादे से यहाँ आया हूँ। नारायण दास की परीक्षा लेने के इरादे से राजा बोला- मैं भी चोर हूँ। तुम्हारा और मेरा लक्ष्य एक है। यह लो चाबी। अंदर जाकर जो भी माल लेना है, निकाल लो। यह कहकर राजा ने उसके हाथ में चाबी पकड़ा दी। राजा को सादा वेश में देख नारायण दास ने मान लिया कि यह भी चोर है और चाबी लेकर महल के अंदर जाकर तिजोरी खोला जिसमें तीन हीरे रखे थे। तीन मूल्यवान हीरों को देख उनमें से दो हीरे नारायणदास ने निकाल लिए और इतने में ही संतोष मानकर बाहर निकल आया तथा बाहर टहल रहे दूसरे चोर को एक हीरा और चाबी देकर कहा- यह लो भाई तिजोरी में तीन हीरे थे जिसमें से हिस्सा करने की परेशानी से बचने के लिए मैंने दो हीरे ही निकाले हैं।

इतना कहकर जब चोर चल दिया तब राजा बोला-चोर भाई, तुम अपना पता देते जाओ। फिर कभी तुम्हारे सहयोग कि यदि आवश्यकता पड़ी तो हम तुम्हें याद करेंगे। नारायण दास ने अपना पता दिया और महल से नीचे उतरकर घर आ गया।

दूसरे दिन राज दरबार में राजा ने जाहिर किया कि आज राजमहल में चोरी हुई है। रात्रि में कोई चोर महल में घुसकर चोरी किया है। राजा ने प्रधानमंत्री को तिजोरी की चाबी देकर कहा-प्रधानमंत्री जी, आप देखकर आओ चोर क्या-क्या ले गया। प्रधानमंत्री वहां जाकर तिजोरी खोला और बचे हुए एक हीरे को चुपचाप अपनी जेब में छिपा लिया और वापस आकर राजा को बताया कि महाराज की तिजोरी से तीनों कीमती हीरे गायब हैं। राजा ने तुरंत चोर को बुलवा लिया और चोर नारायणदास से पूछा- तुमने रात्रि में राजमहल से कितने हीरे चुराए थे? क्योंकि नारायण दास ने झूठ न बोलने का संकल्प लिया थाा इसलिए उसने सच बोला-महाराज, मैंने रात्रि में महल की तिजोरी से दो हीरे चुराए थे जिसमें से एक हीरा अपने सहयोगी चोर को दे दिया था और एक मैंने लिया था तथा एक हीरा तिजोरी में ही छोड़ दिया था। राजा ने नारायण दास की विश्वास भरी बात को सुनकर प्रधानमंत्री की तलाशी लेने का आदेश दिया और एक हीरा प्रधानमंत्री की जेब से मिल भी गया। प्रधानमंत्री अपना अपराध स्वीकार कर राजा से माफी की गुहार लगाने लगा किंतु राजा ने प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा दिया और चोर नारायण दास की सत्यवादिता से खुश होकर उसे प्रधानमंत्री के पद पर बैठा कर कहा-मुझे इस प्रकार के ईमानदार व्यक्ति की आवश्यकता है जिस पर भरोसा किया जा सके।

इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि एक ही बुराई को त्यागने से इंसान इंसानियत के ऊंचे शिखर तक पहुंच सकता है।

रचनाकार:राम सहोदर पटेल,एम.ए.(हिन्दी,इतिहास)
स.शिक्षक, शासकीय हाई स्कूल नगनौड़ी 
गृह निवास-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल(मध्यप्रदेश)
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